प्रश्नकर्ता : घर में या बाहर मित्रों में सब जगह हर एक के मत भिन्न भिन्न होते हैं और उसमें हमारी धारणा के अनुसार नहीं हो तो हमें क्रोध क्यों आता है? तब क्या करना चाहिए?
दादाश्री : सब लोग अपनी धारणा के अनुसार करने जाएँ, तो क्या होगा? ऐसा विचार ही क्यों आता है? तुरंत ही सोचना चाहिए कि यदि सभी अपनी धारणा के अनुसार करने लगें, तो यहाँ पर सारे बरतन तोड़ डालेंगे, आमने-सामने और खाना भी नहीं रहेगा। अतः धारणा के अनुसार कभी करना ही मत। धारणा ही मत करना तो गलत ठहरेगा ही नहीं। जिसे गरज़ होगी वह धारणा करेगा, ऐसा रखना।
प्रश्नकर्ता : हम कितने भी शांत रहे लेकिन पति क्रोध करे तो हमें क्या करना चाहिए?
दादाश्री : वह क्रोध करे और उसके साथ झगड़ा करना हो, तो आपको भी क्रोध करना चाहिए, अन्यथा नहीं! यदि फिल्म बंद करनी हो तो शांत हो जाना। फिल्म बंद नहीं करनी हो, तो सारी रात चलने देना, कौन मना करता है? क्या आपको पसंद है ऐसी फिल्म?
प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसी फिल्म पसंद नहीं है।
दादाश्री : क्रोध करके क्या करना है? वह आदमी खुद क्रोध नहीं करता है, यह तो 'मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट' (डिस्चार्ज होती मनुष्य प्रकृति) क्रोध करता है। इसलिए फिर खुद को मन में पछतावा होता है कि यह क्रोध नहीं किया होता तो अच्छा था।
प्रश्नकर्ता : उसे ठंडा करने का उपाय क्या?
दादाश्री : वह तो यदि मशीन गरम हुई हो और ठंडी करनी हो तो थोड़ी देर बंद रखने पर अपने आप ठंडी हो जाएगी और यदि हाथ लगाएँ या उसे छेड़ेंगे तो हम जल जाएँगे।
प्रश्नकर्ता : मेरे और मेरे हज़बन्ड के बीच क्रोध और बहस हो जाती है, कहा सुनी वगैरह। तो मैं क्या करूँ?
दादाश्री : क्रोध तू करती है या वह? क्रोध कौन करता है?
प्रश्नकर्ता : वह, फिर मुझ से भी हो जाता है।
दादाश्री : तो आप भीतर ही खुद को उलाहना देना, ''क्यों तू ऐसा करती है? पहले किया हुआ तो भुगतना ही होगा न!'' लेकिन प्रतिक्रमण करने से ये सभी दोष खत्म हो जाते हैं। वर्ना हमारे ही दिए हुए घूँसे,फिर हमें भुगतने पड़ते हैं। लेकिन प्रतिक्रमण करने पर ज़रा ठंडे पड़ जाते है।
Book Name: क्रोध (Page # 23 Paragraph #5 to #8 and Page # 24)
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