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परम पूज्य दादा भगवान के जीवन में अलग अलग प्रकार के एडजस्टमेंट लेने के वास्तविक प्रसंग

जब हम विभिन्न परिस्थितियों में किसी को एडजस्टमेंट लेते हुए देखते या सुनते है तब हमे नयी दृष्टि मिलती है कि हम भी अपने जीवन में इस प्रकार के एडजस्टमेंट ले सकते है। परम पूज्य दादाश्री, जीवन के प्रत्येक प्रसंग में शिकायत किये बिना एडजस्ट होते थे। उनके विभिन्न प्रकार के एडजस्टमेंट लेने के ढंग को अपने जीवन में आत्मसात कर के, जानते है उनके अनुभव उन्ही के शब्दों में।

परम पूज्य दादा भगवान का भोजन के साथ एडजस्टमेंट

  • एक बार हीराबा ने बहुत अच्छी कढ़ी बनाई लेकिन नमक थोड़ा ज्यादा था। मैंने सोचा नमक तो ज्यादा पड़ गया है लेकिन खानी तो पड़ेगी न। जैसे ही हीराबा अंदर गए , मैंने झट से थोड़ा पानी मिला दिया। उन्होंने वह देख लिया और कहा " यह क्या किया" ? मैंने कहा आप चूल्हे पर रख कर पानी डालती , मैंने यहाँ नीचे रख कर डाल दिया है। तब उन्होंने कहा, लेकिन मैं तो पानी डालकर उसे उबाल देती हूँ। मैंने कहा मेरे लिए तो दोनों एक सामान है। मुझे तो काम से काम है न !

  • जो भी थाली में आए वह खा लेना। जो सामने आया है वह संयोग है और भगवान ने कहा है जो संयोग को धक्का मरेगा तो वह धक्का तुझे लगेगा। यदि हमारी थाली में रखे कुछ चीज़े मुझे भाती नहीं , तो उनमे से दो चीज़े खा लेते है। नहीं खाएंगे तो दो के साथ झगड़ा होगा। एक तो जिसने पकाया हो, उसके साथ झंझट होगा , तिरस्कार होगा, दूसरा भोजन के साथ। खाने की चीज़ कहेगी , मेरा क्या दोष है ? मै तुम्हारे पास आयी हूँ और तुम मेरा अपमान क्यों कर रहे हो ? तुझे जितना ठीक लगे उतना ले लो लेकिन मेरा अपमान नहीं करना। अब क्या हमे, उसे मान नहीं देना चाहिए। हमे तो कोई ऐसी चीज़ दे जो हमे भाती नहीं, तो भी हम उसे मान देते है। एक तो यो ही कुछ नहीं मिलता और यदि मिले तो उसे मान देना पड़ता है। आपको कोई खाने की चीज़ दे और आप उसमे दोष निकालो तो सुख घटेगा या बढ़ेगा ? कई बार सब्जी मेरी रूचि की नहीं होती है ,फिर भी मै खा लेता हूँ और बनाने वाले की प्रशंसा भी करता हूँ।
  • कई बार तो चाय में चीनी नहीं होती, तब भी हम कुछ नहीं कहते। तब लोग कहते है , ऐसा करोगे तो घर में सब कुछ बिगड़ जायेगा। मैंने कहा कि "आप कल देखना न ! क्या होता है " तब फिर दुसरे दिन हीराबा ने कहा, चाय में चीनी नहीं फिर भी आपने हमे बताया ही नहीं। मैंने कहा, मुझे बताने की क्या आवश्यकता थी ? आपको अपने आप पता चल जाएगा ही न ? आप नहीं पीती तो मुझे कहने की आवश्यकता होती। आप पीती हो, फिर मुझे कहने की क्या आवश्यकता ? 

परम पूज्य दादा भगवान के व्यवहारिक एडजस्टमेंट

  • मेरा तो चोर के साथ , जेबकतरे के साथ सबके साथ एडजस्टमेंट हो जाता है। यदि हम चोर के साथ बात करें, वह भी जान जाता है कि हम करुणा वाले है। हम उसे ऐसा नहीं कहते कि तुम गलत हो क्योंकि वह उसका दृष्टिकोण (वियु पॉइन्ट)है। लोग तो उसे नालायक कह कर गलियां देते है। क्या यह वकील झूठे नहीं है ? जो ऐसा कहते है ," झूठा केस जितवा दूँगा" , " क्या वे ठग नहीं कहलायेंगे "। जो चोर को धोखेबाज कहते है और बिलकुल झूठे केस को सच्चा कहते है , उनके ऊपर विश्वास कैसे कर सकते है ? इसके बावजूद भी उनका चलता है न ? किसी को भी हम गलत नहीं कहते , वो अपने वियु पॉइंट से सही ही है। लेकिन उसे सही बात समझाएं तू जो यह चोरी करता है ,उसका तुझे क्या फल मिलेगा !
  • एक बार मैंने एक व्यक्ति को ५०० रुपये , बिना किसी लिखा-पढ़ी के उधार दिए। मैंने कंही भी इस उधारी के लिए उसके हस्ताक्षर नहीं लिए। मैं बिलकुल भूल गया था। एक डेढ़ वर्ष बाद अचानक उनसे मिलने पर मुझे याद आया। मैंने उनसे कहा यदि आपके पास पैसो का इंन्तजाम हो तो मुझे मेरे ५०० रूपए लोटा दो। उन्होंने कहा कैसे ५०० रुपये, आपने कब मुझे दिए? उन्होंने कहा बल्कि आप भूल रहे है, मुझे आपसे ५०० रूपए लेनें है मैं समझ गया और उनसे कहा , हाँ मुझे याद करने दो और फिर सोचने का नाटक किया और बोला " हाँ मुझे याद आ गया है ", आप कल आकर मेरे से पैसे ले जाएँ। अगले दिन वो आये और हमने उन्हें पैसा दे दिया। , यदि ऐसा व्यक्ति पैसा न लौटने के लिए दोषारोपण करे तो आप क्या करोगे ? ऐसे कई उदाहरण है। 

    प्रशनकर्ता : आपने उसे दुबारा से ५०० रुपये क्यों दिए ?

    दादाश्री : यह सुनिश्चित करने के लिए फिर किसी अवतार में हमारा और उसका लेन देन का कारण न हो। इतनी जागृति तो होनी चाहिए।

परम पूज्य दादा भगवन के अन्य एडजसटमेंट्स

  • एक बार जब हम स्नान को गए तब पाया नहाने का पानी डालने के लिए मग ही नहीं है। हमने एडजस्ट किया। पानी में हाथ डाला तो बहुत गर्म था पानी। ठन्डे पानी का नल खोला तो टंकी खाली। फिर तो हम धीरे धीरे हाथ से पानी चुपड़ चुपड़ कर ठंडा करके नहाये। सभी महात्मा ने कहा आज तो दादाजी ने स्नान में बहुत समय लगा दिया। तो क्या करते ! पानी ठंडा होता तब न। हम किसी से कहते ही नहीं यह लाओ, वो लाओ। एडजस्ट हो जाते है। एडजस्ट हो जाना ही सबसे धर्म है
  • अपना धर्म कहता है कि प्रतिकूलता में अनुकूलता को देखो। उदाहरणतः, " एक रात्रि मुझे आभास हुआ यह चादर मैली है"। फिर मैंने मन में ही एडजस्टमेंट ले लिया , यह कितनी मुलायम है , फिर तो इतनी अच्छी लगी कि पूछो ही मत ! पंचेन्द्रिय ज्ञान ही असुविधा को अनुभव कराता है।
  • जब मै २० -२५ वर्ष का था , तो सिनेमा जाता था। घर आते आते आधी रात हो जाती थी। घर की और आते हुए जोर जोर से जूतों की आवाज करते हुए चलता और सोते हुए कुत्तों को डरा देता। एक दिन विचार आया ,मै किस प्रकार का इंसान हूँ, बेचारे कुत्तों को सोते हुए जगा देता हूँ। उसके बाद से, मै हर बार जूतों को उतार कर , हाथ में पकड़ कर उनके पास से गुजरता। छोटेपन से ही हम यही करते थे। आपको नहीं लगता , आवाज से कुत्ते डर जाते है ?
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