आदर्श सांसारिक जीवन की परिभाषा ही एडजस्टमेंट है। जितना आप एडजस्ट होंगे उतनी आपकी शक्तियां बढ़ेगी और कमज़ोरिया टूटेगी। पड़ोसी भी कहेंगे सभी घर में झगड़ा है, लेकिन इस घर में नहीं।
अब मनुष्य तो मनुष्य ही है, लेकिन आपको पहचानना नहीं आता। घर में पचास लोग है किन्तु आपको उनकी प्रकृति पहचानने की परख नहीं इसलिए टकराव होते रहता है। उन्हें पहचानना तो चाहिए ना? अगर घर में एक व्यक्ति शिकायत ही करता रहता है तो, तो वह उसका स्वभाव ही है, इसलिए आपको एक बार में ही समझ लेना है कि उनका स्वभाव ऐसा ही है। उनके स्वाभाव को पहचानने के बाद आपको आगे और जाँच करने की आवश्यकता नहीं रहती।
कुछ लोगों को रात को देर से सोने की आदत होती है और कुछ लोगों को जल्दी सोने की आदत होती हैं। तो उन दोनों का मेल कैसे बैठेगा ? यदि परिवार के सभी सदस्य एक ही छत के नीचे रहते हैं तो क्या होगा? घर में एक व्यक्ति ऐसा कहे कि "आप बेअक्कल है " तब आपको समझ लेना है यह ऐसा ही कहेगा। इसलिए आपको एडजस्ट हो जाना चाहिए। आप उसे अपमान का जवाब देते हो तो आप थक जाओगे और टकराव जारी रहेगा। वह तो आपसे टकराया और यदि आप भी उससे टकराएंगे तो ऐसा साबित हो जायेगा की आपकी भी आखें नहीं है। मनुष्यों की प्रकृति के अंतर को समझकर व्यवहार करेंगे, तब एडजस्ट होना सरल हो जायेगा।
परम पूज्य दादा भगवानने घर में शांति प्रस्थापित करने के लिए कई निवारण दिए है, तो चलिए जानते है अधिक उन्ही के शब्दों में:
प्रश्नकर्ता : मुख्य वस्तु यह कि घर में शांति रहनी चाहिए।
दादाश्री : मगर शांति कैसे रहे? लड़की का नाम शांति रखें, फिर भी शांति नही रहती। उसके लिए तो धर्म समझना चाहिए। घर के सभी सदस्यों से कहना चाहिए कि, ‘हम घर के सभी सदस्य आपस में किसी के बैरी नहीं हैं, किसी का किसी से झगड़ा नहीं है। हमें मतभेद करने की कोई ज़रूरत नहीं हैं। आपस में मिल-बाँटकर शांतिपूर्वक खाओ-पीओ। आनंद करो, मौज करो।’ इस प्रकार हमें सोच-समझकर सब करना चाहिए। घरवालों के साथ क्लेश कभी भी नहीं करना चाहिए। उसी घर में पड़े रहना है फिर क्लेश किस काम का? किसीको परेशान करके खुद सुखी हो सके, ऐसा कभी नहीं होता। हमें तो सुख देकर सुख लेना है। हम घर में सुख देंगे, तभी सुख मिलेगा और वह चाय-पानी भी ठीक से बनाकर देगी, वर्ना चाय भी ठीक से नहीं बनाएगी।
यह तो कितनी चिंता-संताप! मतभेद ज़रा भी कम नहीं होता, फिर भी मन में मानते हैं कि मैंने कितना धर्म किया! अरे, घर में मतभेद टला? कम भी हुआ है? चिंता कम हुई? कुछ शांति आई? तब कहता है कि नहीं, लेकिन मैंने धर्म तो किया न? अरे, तू किसे धर्म कहता है? धर्म से तो भीतर शांति हो जाती है। जहाँ आधि-व्याधि-उपाधि नहीं हो, वह धर्म! स्वभाव (आत्मा) की ओर जाना धर्म कहलाता है।
वाइफ के हाथ से अगर पंद्रह-बीस इतनी बड़ी काँच की डिशें और ग्लास-वेयर गिरकर फूट जाएँ तो? उस वक्त आप पर कोई असर होता है क्या?
दु:ख होता है, इसलिए कुछ बड़बड़ाये बगैर रहता नहीं न! यह रेडियो बजे बगैर रहता ही नहीं! दु:ख हुआ कि रेडियो शुरू, इसलिए उसे (वाइफ को) दु:ख होता है। तब फिर वह क्या कहेगी? हाँ, जैसे तुम्हारे हाथों तो कभी कुछ टूटता ही नहीं! यह समझने की बात है कि हमसे भी डिशें गिर जाती हैं न। उसे हम कहें कि तू फोड़ डाल तो नहीं फोड़ेगी। फोड़ेगी कभी? वह कौन फोड़ता होगा? इस वल्र्ड में कोई मनुष्य एक डिश भी फोड़ने की शक्ति नहीं रखता। यह तो सब हिसाब बराबर हो रहा है। डिशें टूटने पर हमें पूछना चाहिए कि तुम्हें लगी तो नहीं है न?
अगर सोफे के लिए झगड़ा हो रहा हो तो सोफे को बाहर फेंक दो। वह सोफा तो दस-बीस हज़ार का होगा, उसके लिए झगड़ा कैसा? जिसने फाड़ा हो उसके प्रति द्वेष होता है। अरे भाई, फेंक आ। जो चीज़ घर में झगड़ा खड़ा करे, उस चीज़ को बाहर फेंक आ।
जितना समझ में आता है, उतनी श्रद्धा बैठती है। उतना ही वह फल देती है, मदद करती है। श्रद्धा नहीं बैठे तो वह मदद नहीं करती। इसलिए समझकर चलोगे तो अपना जीवन सुखी होगा और उनका भी सुखी होगा।
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