परंपरागत मार्ग में मुक्ति पाने के लिए इंसान को अपने पारिवारिक जीवन और अन्य भौतिक चीज़ों का त्याग करना पड़ता है। खुद के अंदर रही हुई कमजोरियों को निकालना पड़ता है और साथ ही आत्म नियंत्रण का अभ्यास भी करना पड़ता है ताकि अहंकार खत्म हो जाए और आत्मा की प्राप्ति हो| लेकिन अक्रम विज्ञान अलग है| इसमें में ऐसा कुछ नहीं करना होता|
पहले चरण का मोक्ष अर्थात आप इसी जन्म में अपने जीवन में दुःखों से मुक्ति का अनुभव करते हैं। रोज़मर्रा की परेशानियों के बीच में भी आप अपने भीतर, आत्मा के आनंद का अनुभव करते हैं।
दूसरे चरण का मोक्ष अर्थात जब सभी कर्म पूरी तरह से समाप्त हो जाने पर जन्म-मरण के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है। यही मोक्ष है|
आपको पहले चरण का मोक्ष तो यहाँ तुरंत ही प्राप्त हो सकता है। क्या आपको यह नामुमकिन लग रहा है? ऐसा बिल्कुल नहीं है! हज़ारों लोगों ने इसका अनुभव किया है और इससे उनके जीवन में बदलाव भी आया है।
अक्रम विज्ञान हमें ऐसी शक्ति प्रदान करता है, जिससे हम किसी भी प्रकार के संयोगों में अलिप्त रह सकते हैं और इस प्रकार ‘पहले चरण के मोक्ष’ का अनुभव कर सकते हैं।
जब ज्ञानी की कृपा से अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होता है, तब हमारी अनंत जन्मों की अज्ञानता दूर हो जाती है| इस प्रकार अक्रम विज्ञान में भीतर से ही मौलिक परिवर्तन शुरू हो जाता है। सिर्फ दो ही घंटों में आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है| ‘आत्मज्ञान’ एक वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जा सकता है, जिसे ज्ञानविधि कहते है। आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद किसी भी प्रकार का त्याग करने की ज़रूरत नहीं है। “मैं कौन हूँ” की सही समझ और सही ज्ञान द्वारा हम किसी भी परिस्थिति में समता में रह सकते हैं।
अक्रम विज्ञान,यथार्थ समझ पर आधारित है, जो अनिवार्य रूप से सही आचरण की ओर ले जाता है। यह समझने में बेहद सरल है और पूरी तरह से वर्तमान समय के लिए अनुरूप है।
अक्रम विज्ञान का मार्ग ज्ञानी पुरुष,‘दादाश्री’ ने बताया है| उन्हें सभी ‘दादा भगवान’ के नाम से भी जानते हैं।
उनका पूरा नाम ‘अंबालाल मूलजीभाई पटेल’ था और वे पेशे से सिविल कोन्ट्रेक्टर थे। जून 1958 की शाम को जब वे सूरत(भारत) के रेलवे स्टेशन की एक बेंच पर बैठे थे, तब कुदरती रूप से उनके भीतर एक अभूतपूर्व आध्यात्मिक अनुभव प्रगट हुआ| इस सहज आंतरिक अनुभव द्वारा, जो लगभग एक घंटे तक चला, उन्हें सभी आध्यात्मिक प्रश्नों के जवाब मिल गए - जैसे कि ‘यह संसार क्या है?’, ‘जगत कौन चलाता है?’, ‘मैं कौन हूँ?’, ‘कर्म क्या है?’, ‘बंधन क्या है?’, ‘मोक्ष क्या है?’, ‘मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है?’
“जिस सुख को आप खोज रहे है, वह इस संसार जीवन में प्राप्त नहीं हो सकता। सच्चा सुख ख़ुद (आत्मा) में है। वह सुख ‘मैंने’ प्राप्त किया है , ‘मैंने’ उसका अनुभव किया है | ”
-दादा भगवानयह उनके कई पूर्व जन्मों की आध्यात्मिक ख़ोज और प्रयासों का परिणाम था। उनके अनुभव से भी ज्यादा अद्भुत थी वह 'शक्ति' जो उनमें प्रगट हुई थी| इस 'शक्ति' यानि ‘ज्ञानविधि’ नामक एक वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा वह इस तरह का अनुभव उनके पास आनेवाले सभी जिज्ञासुओं को भी करवा सकते थे| यही ज्ञान वे दूसरों में भी सिर्फ दो ही घंटों में प्रगट करवा सकते थे। अब तक लाखों जिज्ञासुओं ने ‘ज्ञानविधि’ द्वारा उनसे आत्मज्ञान प्राप्त किया है और आज भी कितने ही लोग यह ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं| यह आध्यात्मिक विज्ञान “अक्रम विज्ञान” के नाम से जाना जाता है।
परम पूज्य दादाश्री ने, पूज्य नीरुमा और पूज्य दीपक भाई को सत्संग और ज्ञानविधि की सिद्धि प्रदान की थी|
आज भी आत्मज्ञानी पूज्य दीपकभाई प्रश्नोत्तरी सत्संग और ज्ञानविधि द्वारा पूरी दुनिया में इस विज्ञान का प्रसार कर रहे हैं।
यथार्थ ज्ञान वही है, जो हर परिस्थिति में सही समाधान प्रदान करे। यह ‘अक्रम विज्ञान’ ठीक वैसा ही करता हैं। यह विज्ञान आपको अपने ‘वास्तविक’ स्वरूप से जोड़ता है और आपके जीवन को वह जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार करने की गहरी अंतर्दृष्टि भी देता है। इससे आप अपने जीवन व्यवहार के सम्बन्धों में परिवर्तन लाकर उन्हें और भी ज़्यादा मज़बूत बना सकतें हैं। जीवन में बदलाव लाने वाले विज्ञान की एक झलक पाने के लिए, आगे पढ़ें...
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