हाँ, आप अपना भाग्य स्वयं बनाते हैं; आप अपना भाग्य चुनते हैं! हममें से ज़्यादातर लोग इस सच्चाई को पहचानते नहीं या नज़रअंदाज़ कर देते हैं, क्योंकि भाग्य सीधे कर्म से जुड़ा हुआ है। कर्म - एक ऐसा शब्द जिसे अक्सर गलत समझा जाता है। जो लोग मानते हैं कि मनुष्य अपना भाग्य चुन सकते हैं, वे यह भी मानते हैं कि व्यक्ति के कर्म ही उसका भाग्य निर्धारित करते हैं। वे पुष्टि करते हैं कि अच्छे कर्म अच्छी नियति की ओर ले जाते हैं, जबकि बुरे कर्मों से बुरी नियति बनती है। उनमें से ज़्यादातर लोग कर्मों का अर्थ मनुष्य की क्रियाएँ करते हैं।
हालाँकि, वास्तव में, कर्म क्रियाएँ नहीं बल्कि भाव हैं। इसके अलावा, प्रत्येक कर्म के स्टेज होते हैं। आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं कि आप जाने-अनजाने में अपनी नियति कैसे बनाते हैं।
कर्म और भाग्य के संबंध को उदाहरण से समझें
मान लीजिए कि, आपने दिवाली या क्रिसमस के अवसर पर अपने घर की नौकरानी के बच्चे को अपना आधा पिज़्ज़ा दे दिया। अब, आइए देखते हैं कि इस क्रिया का क्या परिणाम आता है और आगे क्या होता है:
- आधा पिज़्ज़ा देने की क्रिया आपके पिछले जन्म के बंधे कर्म का फल है।
- पिछले जन्म में आपने ऐसा करने का भाव किया था। इस भाव से कर्मबीज बोया गया, जो इस जन्म में उदय में आया।
- दान की इस अच्छी क्रिया के कारण आपको अपनी नौकरानी से आशीर्वाद और सम्मान मिलेंगे और यहाँ तक कि यह जानने वाले सभी लोगों से प्रशंसा भी मिलेगी। यह कर्मफल परिणाम अर्थात् दान की क्रिया का परिणाम है।
अतः हरेक कर्म के पीछे कर्मबीज, कर्मफल और कर्मफल परिणाम होते हैं। निःस्वार्थ भाव से किसी की सेवा करने का भाव शुभ माना जाता है और इसलिए इसके परिणामस्वरूप अच्छा भाग्य मिला।
खैर, कर्मफल के दौरान, एक मोड़ आता है जो नए कर्म बांधता है, जिसके आधार पर आप अपनी नियति चुनते हैं!
नए कर्म को बांधते मोड़ को जानिए!
अब बच्चे को पिज़्ज़ा बाँटते वक़्त, क्या होगा अगर आप वास्तव में बाँटना नहीं चाहते थे? क्या होगा अगर आपने ऐसा सिर्फ़ अपनी नौकरानी को रखने के लिए किया क्योंकि आपके इलाके में कोई और कोई किफ़ायती नौकरानी नहीं थी? अपने मन में आप कह सकते हैं, "मैं अपना खाना कभी बाँट नहीं सकता था लेकिन इस बार मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है!" यदि आपका यही भाव होता तो आप पापकर्म बाँधते हैं और आपकी नियति ऐसी होगी कि आप खाना नहीं बाँट पाएँगे।
अब जब यह नियति उदय में आती है, तब आपको खाना नहीं बाँट सकने पर बहुत बुरा लगता है। इस वक़्त यदि आप यह भाव करते हैं कि, "मैं वास्तव में अपना खाना व्यर्थ करने या ज़्यादा खाने के बजाय बाँटना चाहता हूँ"; तो आप अगले जन्म में ऐसा कर पाएँगे। अन्यथा, अगले जन्म में भी खाना बाँटने में अंतराय जारी रहेंगे।
जब कोई भी व्यक्ति अन्य के भाव को देख या पहचान नहीं सकता, कुदरत देख सकती है! आपका किसीको नहीं बाँटने का भाव अनिवार्य रूप से कुदरत तक पहुँच जाता है। जिसके बाद आपको कुदरती रूप से जो फल प्राप्त होता है, वह नियति है।
संक्षेप में, यह भाव ही है जो आपकी नियति की परियोजना करता है और अगले जन्म की क्रियाओं को तय करता है! पिछले जन्म के भाव ही वर्तमान जन्म में इफेक्ट के रूप में आते हैं। इस प्रकार, आपका अपना भाव ही आपसे अपनी नियति चुनवाता है।
तो, क्या कोई शक्ति मेरी नियति को आकार देने में मदद कर सकती है?
यह अच्छा प्रश्न है, लेकिन इसका उत्तर तीन चरण के कर्मचक्र में है। कर्मबीज के आधार पर कर्मफल और कर्मफल परिणाम निश्चित होते हैं। एक बार जब भाव के रूप में रोपा गया कर्मबीज फल देने के लिए तैयार होता है, तो संजोग कुदरती रूप से एक साथ आते हैं और निर्धारित कार्य होता है।
कुदरत कुछ और नहीं बल्कि संयोगो का सुमेल है।
परम पूज्य दादा भगवान के अनुसार, कर्म का फल कुदरती और वैज्ञानिक है। उदाहरण के लिए, जब कार्बन का एक अणु और ऑक्सिजन के दो अणु इकट्ठा होते हैं तब कार्बन डाइऑक्साइड बनता है।
बीच में कोई भी स्वतंत्र कर्ता नहीं है; यह गैस तब ही बनता है जब कार्बन का एक अणु और ऑक्सीजन के दो अणु जैसे संजोग और उनका एक साथ आना बनता है। इसी तरह, कर्म भी उदय में आता है; तो बीच में कोई कर्ता या नियम बनाने वाला नहीं होता; यह वैज्ञानिक नियमों से संचालित है।
अतः कर्मफल और कर्मफल परिणाम देने के लिए संयोग इकट्ठा होते हैं। इस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है या कर्मफल देने की सत्ता नहीं है। यह ऐसा है कि जैसे मनुष्य या किसी अन्य जीव का आम के पकने या कांटेदार बबूल के विकास पर कोई नियंत्रण नहीं है। आप सिर्फ़ संयोगों का निरीक्षण कर सकते हैं। संक्षेप में, कोई बिचौलिया नहीं है।
“जैसे कि हम बबूल उगाएँ और फिर उसमें से आम की आशा रखें तो नहीं चलेगा न? जैसा बोते हैं, वैसा फल मिलता है। जैसे-जैसे कर्म किए हैं, वैसा फल हमें भुगतना है।” परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं।
इसका अर्थ यह भी है कि भगवान भी कर्ता या दाता नहीं है। जगत को कुदरती संजोग चलाते हैं।
तो, निष्कर्ष क्या है?
अब जब कर्म का विज्ञान समझ में आ गया है, तो अपनी नियति चुनना आपके हाथ में है। अपने भविष्य की नियति को बेहतर बनाने के लिए आपको अपने वर्तमान भाव को साफ़ और शुद्ध रखना होगा। यदि आप चाहते हैं कि आपका भाग्य शाश्वत सुख के अलावा कुछ भी न हो, तो आत्मज्ञान ही इसका रास्ता है! संक्षेप में, आपका भाग्य आपके हाथों में है; भाग्य पसंद है!