ऐसा है न, इस काल के हिसाब से लोगों में इतनी शक्ति नहीं है। जितनी शक्ति है उतना ही दिया है। इतनी भावना करेंगे उनका अगले जन्म में मनुष्यत्व नहीं जाएगा, इसकी गारन्टी देता हूँ। वर्ना आज अस्सी प्रतिशत भी मनुष्यत्व नहीं रहे ऐसा हो गया है।
हमारी इन नौ कलमों में उच्चतम भावनाएँ निहित हैं। सारा सारांश इनमें समाया हुआ है। ये नौ कलमें हम आजीवन पालन करते आए हैं, उसकी यह पूँजी है। अर्थात् यह हमारा रोज़मर्रा का माल है जो जाहिर किया(बताया गया) है, अंतत: लोगों का कल्याण हो उसकी खातिर। कई सालों से, चालीस-चालीस सालों से निरंतर ये नौ कलमें प्रतिदिन हमारे भीतर चलती ही रही हैं। जो लोगों के लिए मैंने जाहिर(बताई) की हैं।
प्रश्नकर्ता: आज तो हम ‘हे दादा भगवान! मुझे शक्ति दो।’ ऐसा करके बोलते हैं। तो ये नौ कलमें आप किसे संबोधित करते थे?
दादाश्री: वह ‘दादा भगवान’ नहीं होंगे, लेकिन कोई और नाम होगा। लेकिन नाम होगा ही, उसे ही संबोधित करके कहते थे। उसे ‘शुद्धात्मा’ कहो या चाहे जो कहो। वह उसे ही संबोधित करके कहते थे।
क्रमिक मार्ग के इतने बड़े शास्त्र पढ़ें या फिर सिर्फ नौ कलमें बोलें तो भी बहुत हो गया! इन नौ कलमों में इतना शक्ति भरी पड़ी हैं। गज़ब की शक्ति है, लेकिन यह समझ में नहीं आता न! वह तो हम समझ नहीं पाते न! ये तो हम समझाएँ तब समझ में आएगा और इसकी कीमत समझ में आई है ऐसा कब कहूँ कि जब कोई मुझे आकर कहे कि ‘ये नौ कलमें मुझे बहुत अच्छी लगी।’ और समझने जैसी है ये सारी नौ कलमें।
ये नौ कलमें किसी शास्त्र में नहीं हैं। लेकिन हम जिसका पालन करते हैं और जो हमेशा हमारे अमल में ही हैं, वही आपको करने के लिए देते हैं। हमारी जो वर्तना है उसी प्रकार ये कलमें लिखी गई हैं। इन नौ कलमों के अनुसार हमारा वर्तन होता है, फिर भी हम भगवान नहीं कहलाते। भगवान तो, जो भीतर हैं वही भगवान! बाकी, किसी मनुष्य से ऐसा वर्तन नहीं हो सकता।
चौदह लोक का सार है इतने में। ये नौ कलमें जो लिखी हैं, उसमें चौदह लोक का सार है। पूरे चौदह लोक का जो दही हो, उसे मथकर यह मक्खन निकालकर रखा है। इसलिए ये सभी कितने पुण्यवान हैं कि (अक्रम मार्ग की) लिफ्ट में बैठे-बैठे मोक्ष में जा रहे हैं! हाँ, बस इतनी शर्त है कि हाथ बाहर मत निकालना!
ये नौ कलमें तो किसी जगह होती ही नहीं। नौ कलमें तो पूर्ण पुरुष ही लिख पाएँ। वे (आमतौर पर) होते ही नहीं न, वे हों तो लोगों का कल्याण हो जाए!
Book Name: भावना से सुधरे जन्मोंजन्म (Page #37 ; Page #38 Paragraph #1,#2,#3 )
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