ज्ञानयोग : अज्ञानयोग
प्रश्नकर्ता: योगसाधना करते हैं, उससे विकास होता है न?
दादाश्री: पहले हमें तय करना चाहिए कि योगसाधना करके हमें क्या प्राप्त करना है? किसकी प्राप्ति के लिए हम योगसाधना कर रहे हैं, पैसे कमाने के लिए या सीखने के लिए?
प्रश्नकर्ता: सभी प्रकार के दैहिक विकास के लिए।
दादाश्री: ये जो सभी साधनाएँ करते हैं, वे तो मन की या देह की साधना कर रहे हैं न?
प्रश्नकर्ता: आचार्य के साथ रहकर करें फिर भी?
दादाश्री: मार्गदर्शन दो प्रकार का होता है - एक रिलेटिव और एक रियल। रिलेटिव के लिए तो बाहर कईं मार्गदर्शक हैं। इसलिए पहले हमें तय करना चाहिए कि कौन सा चाहिए? यदि सर्व दुःखों से मुक्त होना हो तो यह रियल मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए। यानी फिर आपको कौन सा चाहिए? ये पैसा-वैसा तो बाहर रिलेटिव में मिल जाएगा, क्योंकि मेहनत से फल तो मिलेगा न? लेकिन यहाँ पर तो आत्मा की योगसाधना की जाती है, इसलिए सभी प्रकार से काम पूरा हो जाता है!
प्रश्नकर्ता: ध्यान और योग में क्या फर्क है?
दादाश्री: चार प्रकार के योग हैं। पहला-देहयोग, देह में पीछे चक्र होते हैं वहाँ पर एकाग्रता करना, उसे देहयोग कहते हैं। उस योग की कीमत कितनी? तब कहें, व्यग्रता का रोग है इसलिए एकाग्रता की दवाई चुपड़ते हैं। एकाग्रता की ज़रूरत तो, जिसे व्यग्रता का रोग है, उसे है। जिसे जो-जो रोग होता है, उसे वैसी दवाई की ज़रूरत है। वह तो केवल टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट है, उससे तो केवल टेम्परेरी रिलीफ मिलती है। यदि इस रिलीफ को अंतिम स्टेशन मानें तो उसका हल कब आएगा? यदि इस एकाग्रता की दवाई से क्रोध-मान-माया-लोभ चले जाते हों तो वह काम का है। यह तो पच्चीस साल तक एकाग्रता करता है, योगसाधना करता है, उससे यदि क्रोध-मान-माया और लोभ नहीं जाएँ तो किस काम का? जिस दवाई से क्रोध-मान-माया और लोभ जाते हैं, वही दवाई सही है।
यह योग साधना तू करता है, वह किसकी करता है? ‘जान लिया’ उसकी या अनजान की? आत्मा से तो अनजान है, तो उसकी साधना किस तरह से होगी? देह को ही जानता है और देह की ही योगसाधना तू करता है, उससे तूने आत्मा पर क्या उपकार किया? और इसलिए तू मोक्ष को कब प्राप्त कर सकेगा?
दूसरा योग - वह वाणी का योग है, वह जपयोग है, उसमें पूरे दिन जप करता रहता है। ये वकील वकालत करते हैं, वह भी वाणी का योग कहलाता है!
तीसरा योग - वह मनोयोग है, किसी भी प्रकार का मानसिक ध्यान करते हैं, वह। लेकिन ध्येय निश्चित किए बगैर ध्यान करने से कुछ नहीं होता। गाड़ी से जाना हो तो स्टेशन मास्टर से कहना पड़ता है न कि मुझे इस स्टेशन की टिकट दो। स्टेशन का नाम तो बताना पड़ता है न? यह तो ‘ध्यान करो, ध्यान करो,’ लेकिन किसका? ये तो कह!
लेकिन यह सब अंधाधुंध चल रहा है, बिना ध्येय का ध्यान वह तो अंधाधुंध कहलाता है। ऐसे ध्यान में तो आकाश में भैंसा दिखता है और उसकी लंबी पूँछ दिखती है बस, ऐसा ध्यान किस काम का? यों ही गाड़ी चल पड़ेगी तो कौन से स्टेशन पर रुकेगी, वह भी तय नहीं है। ध्येय तो सिर्फ एक ‘ज्ञानीपुरुष’ के पास ही है, वहाँ पर जीवंत ध्येय प्राप्त होता है, उसके बिना यदि ‘मैं आत्मा हूँ’ बोलेंगे तो काम नहीं होगा। वह तो जब ‘ज्ञानीपुरुष’ पाप जला देते हैं, ज्ञान देते हैं, तब ध्येय निश्चित हो पाता है स्वरूप ज्ञान देते हैं, तब ध्येय प्राप्त होता है उसके बिना ‘मैं शुद्धात्मा हूँ’ बोलने से कुछ भी नहीं होता। वह किसके जैसा है? नींद में ‘मैं प्रधानमंत्री हूँ’ ऐसा बोले तो कुछ फल आता है? मन के योग में ध्यान, धर्म करता है, लेकिन वे सभी रिलीफ रोड हैं। अंतिम आत्मयोग, उसके हुए बिना कुछ भी परिणाम नहीं आ सकता। आत्मयोग प्राप्त नहीं हुआ है, इसीलिए तो ये सब पज़ल में डिज़ोल्व हो गए हैं न!
हम सब यहाँ पर ‘शुद्धात्मा’ में रहते हैं, तो वह आत्मयोग है। स्वरूप का ज्ञान, वह आत्मयोग है यानी कि वह खुद का स्थान है, बाकी के सभी देहयोग हैं। उपवास, तप, त्याग करते हैं, वे सभी देहयोग हैं। वे तीनों ही योग (मन-वचन-काया) फिज़िकल है। इस फिज़िकल योग को पूरा जगत् अंतिम योग मानता है। ये सभी योग मात्र फिज़िकल प्राप्त करने के लिए ही है। फिर भी इस फिज़िकल योग को अच्छा कहा गया है। ऐसा कुछ भी नहीं करेगा तो शराब पीकर सट्टा खेलेगा, उसके बजाय तो यह सब करता है वह अच्छा है और इसका फायदा क्या है? कि बाहर का कचरा भीतर नहीं घुसता और रिलीफ मिलती है और मनोबल मज़बूत होता है। बाकी, अंतिम आत्मयोग में आए बिना मोक्ष नहीं हो सकता।
Book Name: आप्तवाणी 2 (Entire Page #299 & #300, Page #301 – Paragraph #1,#2)
Q. मैं ध्यान क्यों नहीं कर पाता और मैं एकाग्र कैसे रहूँ?
A. एक ध्यान में थे या बेध्यान में थे, इतना ही भगवान पूछते हैं। हाँ, वे बेध्यान नहीं थे। ‘नहीं होता’... Read More
Q. क्या ध्यान से मन पर नियंत्रण पाया जा सकता है?
A. मन पर काबू प्रश्नकर्ता: मन पर कंट्रोल कैसे किया जा सकता हैं? दादाश्री: मन पर तो कंट्रोल हो ही... Read More
Q. ध्यान कैसे करें? सच्चे ध्यान (आध्यात्मिक ध्यान) के बारे में समझाइए।
A. जगत् के लोग ध्यान में बैठते हैं, लेकिन क्या ध्येय निश्चित किया? ध्येय की फोटो देखकर नहीं आया है,... Read More
Q. मंत्र ध्यान के क्या लाभ होते हैं?
A. बोलिए पहाड़ी आवाज़ में यह भीतर मन में ‘नमो अरिहंताणं’ और सबकुछ बोले लेकिन भीतर मन में और कुछ चल रहा... Read More
Q. ॐ क्या है? ओमकार का ध्यान क्या है?
A. ॐ की यथार्थ समझ प्रश्नकर्ता: दादा, ॐ क्या है? दादाश्री: नवकार मंत्र बोलें, एकाग्र ध्यान से, वह ॐ... Read More
Q. कुंडलिनी चक्र यानी क्या? और कुंडलीनी जागृत करते समय क्या होता है?
A. कुंडलिनी क्या है? प्रश्नकर्ता: ‘कुंडलिनी’ जगाते हैं, तब प्रकाश दिखता है। वह क्या है? दादाश्री: उस... Read More
Q. क्या योग (ब्रह्मरंध्र) आयुष्य को बढ़ा सकता है?
A. योग से आयुष्य का एक्सटेन्शन? प्रश्नकर्ता: योग से मनुष्य हज़ारों-लाखों सालों तक जीवित रह सकता है... Read More
Q. क्या योग साधना (राजयोग) आत्म साक्षात्कार पाने में मदद करती है?
A. योगसाधना से परमात्मदर्शन प्रश्नकर्ता: योगसाधना से परमात्मदर्शन हो सकता है? दादाश्री: योगसाधना से... Read More
subscribe your email for our latest news and events