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क्या आप क्रोनिक (पुराने) दर्द के साथ जी रहे हैं और उसकी वजह से आत्महत्या करने के विचार कर रहे हैं?

लम्बे समय से चली आ रही बीमारी के तनाव का हम पर जबरदस्त इमोशनल और मानसिक असर हो सकता है। हम मानसिक और शारीरिक रूप से थका हुआ महसूस करते हैं। जब हम रोज़मर्रा के संघर्ष का सामना करते हैं और बीमारी कम होने का नाम नहीं लेती तब पुराने दर्दों के साथ जीना असहनीय लगने लगता है। इलाज करवाने के बाद भी, जब हमारी सेहत नहीं सुधरती तब हम पुराने दर्द (क्रोनिक पेन) से छूटने के लिए आत्महत्या के विचार करने लगते हैं।

अच्छी खबर यह है कि, शारीरिक दर्द से अलग रहने का एक तरीका है: आध्यात्मिक ज्ञान

आत्मसाक्षात्कार की वैज्ञानिक प्रक्रिया (ज्ञानविधि) हमें शारीरिक पीड़ा से मुक्त कर देगी और आत्महत्या के विचारों का अंत कर देगी। अक्रम विज्ञान एक नया और आधुनिक विज्ञान है जो हमें 'कौन भुगत रहा है?', 'मैं कौन हूँ?' और 'इन सब में मेरी भूमिका क्या है?' की सही समझ देता है।

आत्मज्ञान हमें यह समझ प्रदान करता है कि हम अपने सांसारिक जीवन के असरों को क्यों महसूस करते हैं। जब तक हम अपने वास्तविक स्वरूप की खोज नहीं कर लेते, तब तक हम हर जन्म में दु:खी होते ही रहेंगे। हम गलत मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक परिस्थिति हमारी है। परिणामस्वरूप, हम अपनी गलत मान्यताओं, फिर वह अच्छी हों या बुरी, उसके असर को महसूस करते रहते हैं।

जब हम ज्ञानविधि की इस प्रक्रिया के माध्यम से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं, तब शरीर और शुद्धात्मा(आत्मा) अलग हो जाते हैं। हम अपने वास्तविक स्वरूप में आत्मा में आ जाते हैं। तब से, हम सूक्ष्म रूप से यह समझने लगते हैं कि दुःख का अनुभव कौन कर रहा है, दुःख का कारण और दुःख भुगतते समय शरीर से कैसे अलग रहना है।

शुद्धात्मा कभी भी किसी भी प्रकार के दर्द को महसूस या अनुभव नहीं करता है। आत्मा केवल यह जानता और समझता है कि शरीर किस दौर से गुज़र रहा है, दर्द से बाहर निकलने के लिए वह क्या कर रहा है और वह क्या सोच रहा है। आपको पता चलेगा कि कब दर्द बढ़ा और कब कम हुआ।

आत्मज्ञान की प्राप्ति के बाद, जितना अधिक हम इस विज्ञान का प्रयोग करेंगे, उतना ही अधिक हमें आत्मा का अनुभव होगा और उतना ही ज्यादा हम शरीर से अलग रह सकेंगे। अपने शारीरिक कष्टों को समाप्त करने के बारे में हमारे मन में कोई भी आत्महत्या के विचार होंगे तो वे समाप्त हो जाएंगे। भीतर से, हमें लगातार यह जागृति रहेगी कि यह मेरा दर्द नहीं है, यह शरीर का दर्द है। इस तरह हम आनंदमय जीवन जी सकेंगे।

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