अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें21 मार्च |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
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शीलवान का चारित्रबल
शील का प्रभाव ऐसा है कि जगत् में कोई उनका नाम नहीं ले। लुटेरों के बीच रहता हो, सभी उँगलियों में सोने की अँगूठियाँ पहनी हों। यहाँ पूरे शरीर पर सोने के आभूषण पहने हों और लुटेरे मिल जाएँ, लुटेरे देखंगे ज़रूर, लेकिन छू ही नहीं सकेंगे। बिल्कुल भी घबराने जैसा जगत् है ही नहीं। जो कुछ घबराहट है वह आपकी ही भूल का फल है, ऐसा हम बताने आए हैं। लोग तो ऐसा ही समझते हैं कि जगत् अनुमानवाला है।
किंचित्मात्र आपको कोई कुछ कर सके ऐसा है ही नहीं, यदि आप किसी में दखलंदाज़ी नहीं करो तो, उसकी मैं आपको गारन्टी लिख देता हूँ।
जो भूल रहित हैं, उनका तो लुटेरों के गाँव मे भी कोई नाम देनेवाला नहीं है! उतना अधिक तो प्रताप है शील का। पूरे जगत् में शीलवान का-चारित्रवान का कौन नाम ले सकता है! पूरा जगत् खुद की मालिकी का है। अरे, एक बाल भी कोई बांका नहीं कर सके, ऐसी स्वतंत्र मालिकीवाला हैं यह जगत्।
जिन लोगों में चारित्र नहीं हो, वे लोग यदि चारित्रवान को देखते हैं तो तुरंत ही प्रभावित हो जाते हैं। जिस बारे में खुद खराब है, उस बारे में सामनेवाले के अच्छे गुण देखे तो तुरंत ही प्रभावित हो जाता है। क्रोधी व्यक्ति अन्य किसी शांत पुरुष को देखता है तो भी प्रभावित हो जाता है। इस जगत् में जहाँ आपका प्रभाव पड़ने लगे और तब आप, आप विषय खोजो तो फिर क्या होगा? शिक्षक यदि विद्यार्थी से सब्ज़ी मँगवाए, और कुछ मँगवाए तो फिर उसका प्रभाव रहेगा क्या? इसी को ‘विषय’ कहा है। शीलवान का ऐसा प्रभाव पड़ता है कि कोई गालियाँ देने का तय करके आया हो, तो भी उसके सामने आते ही जीभ सिल जाती है। ऐसा आत्मा का प्रभाव है! प्रभाव यानी क्या कि उसे देखने से ही लोगों को उच्च भाव होते हैं। इस ज्ञान के बाद प्रभाव बढ़ता है। यह प्रभाव आगे चलकर चारित्र कहलाता है। बहुत ऊँचा प्रभाव हो, तब चारित्रवान कहलाता है।
चारित्रबल की पहचान क्या?
प्रश्नकर्ता: दादा, यह चारित्रबल क्या है? चारित्रवान किसे कहते हैं?
दादाश्री: चारित्रबल में दो चीज़ें आती हैं। एक, ब्रह्मचर्य और दूसरा, किसी को किंचित्मात्र दु:ख नहीं देना, इन दोनों का गुणा हो तभी चारित्रबल उत्पन्न होता है।
व्यवहार चारित्र में मुख्य दो चीज़ें कौन सी हैं? एक विषयबंध। कौन सा विषय? तब कहें, स्त्री चारित्र विषय। और दूसरा क्या? लक्ष्मी संबंधी। जहाँ लक्ष्मी हो वहाँ पर चारित्र हो ही नहीं सकता।
प्रश्नकर्ता: जहाँ लक्ष्मी हो वहाँ चारित्र नहीं हो सकता, वह कैसे?
दादाश्री: वहाँ चारित्र कहलाएगा ही नहीं न! लक्ष्मी आई यानी लक्ष्मी से तो व्यवहार करना होता है सारा। हम लक्ष्मी नहीं ले सकते।
‘चारित्रबल क्या है’ उसकी पहचान किससे होती है? (तो कहे) और कुछ भी देखना नहीं है। भगवा कपड़े पहनता है या सफेद कपड़े पहनता है, वह नहीं देखना है। भाषा कैसी निकलती है, उस पर से चारित्रबल को पहचाना जाता है। चारित्रबल बढ़े तो तुरंत ही प्रगमित होता है (प्रकट होना)।
संसार में वाणी निकली, वह चारित्रबल की पहचान कहलाती है। (वह) वाणी मीठी-मधुरी, किसी को आघात नहीं लगे, प्रत्याघात नहीं लगे, उपघात (टकराव) नहीं लगे ऐसी वाणी (हो)। किंचित्मात्र दु:ख नहीं हो ऐसी वाणी निकले न, तो वह सब चारित्र ही है। हर कोई भी व्यक्ति कैसे बोलता है, उस पर से चारित्र पहचाना जाता है।
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