वचलबल शीलवान का
इस जगत् के सभी ज्ञान शुष्कज्ञान हैं। शुष्कज्ञानवाले कोई शीलवान पुरुष हो यानी शास्त्रों से ऊपर होता है तो भी उनका वचनबल रहता हैं, शीलवान पुरुष के शब्द कुछ काम करते हैं, अन्यथा और कोई बोलें उसके शब्द काम नहीं करते। एक ही दिन अगर ज़रा सा विषय का विचार भी आ गया हो, तो काम नहीं करता। एक ही दिन अगर लक्ष्मी का विचार आ जाए, तो काम नहीं करता। क्योंकि वह लीकेज कहलाता है।
एक बार भी झूठ बोलने से मनुष्य को बहुत ही नुकसान होता है, ज़बरदस्त नुकसान होता है। लेकिन उसे खबर नहीं है कि कितना नुकसान उठाकर वह खुद अपना रक्षण कर रहा है। एक बार चोरी करने से ज़बरदस्त नुकसान होता है लेकिन उसकी खबर नहीं है। इससे क्या नुकसान हो गया उसकी खबर नहीं है। यह नुकसान सूक्ष्म में होता है। इसलिए उसका प्रताप, उसका शीलवानपना सब खत्म हो जाता है। इंसान बेच देता हैं सारा शीलवानपना। फिर उसका प्रभाव नहीं पड़ता।
मेरे शब्दों ऐसे है न, वचनबलवाले हैं। शीलवान पुरुष के शब्द हैं। सत्ताइस साल से जो खुद देह के मालिक नहीं हैं, जो मन के मालिक नहीं है, जो वाणी के मालिक नहीं हैं, उनके शब्द हैं ये तो।
वचन का बल होता है वह, क्योंकि जितना उनका शील और चारित्र, उतना ही ज़्यादा बल! और चारित्र यानी कम्पलीट मॉरेलिटी, कम्पलीट सिन्सियरिटी, वह है चारित्र। कम्पलीट मॉरेलिटी, एक सेन्ट भी कम नहीं। कम्पलीट सिन्सियरिटी, एक सेन्ट भी कम नहीं। जहाँ ऐसा चारित्र हो वहाँ सभी कुछ चलता है।
जिनकी वाणी से किसी को किचिंत्मात्र दु:ख नहीं हो, जिनके वर्तन से किसी को किचिंत्मात्र दु:ख नहीं हो, जिनके मन में खराब भाव उत्पन्न हुए न हों वे हैं शीलवान। शील के सिवा वचनबल उत्पन्न नहीं हो सकता।
दादावाणी Jan 2014 (Page #8 - Paragraph #12, Page #9 - Paragraph #1 to #5)
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