पॉज़िटिव ‘बोल’ के पॉज़िटिव असर!
एक भाई ने मुझे पूछा कि, ‘आपके जैसी मीठी वाणी कब होगी?’ तब मैंने कहा कि ‘ये सारे जो नेगेटिव शब्द हैं आपके, वैसा बोलना बंद होगा तब।’ क्योंकि हर एक शब्द उसके गुण-पर्याय सहित होता है।
हमेशा पोज़िटिव बोलो। भीतर आत्मा है, आत्मा की हाज़िरी है। इसलिए पोज़िटिव बोलो। पोज़िटिव में नेगेटिव नहीं बोलना चाहिए। पोज़िटिव हुआ, उसमें नेगेटिव बोलें, वह गुनाह है और पोज़िटिव में नेगेटिव बोलते हैं, इसलिए ये सारी मुश्किलें खड़ी होती हैं। ‘कुछ भी नहीं बिगड़ा है’ ऐसा बोलते ही भीतर कितना ही बदलाव हो जाता है। इसलिए पोज़िटिव बोलो।
वर्षों के वर्षों बीत गए, पर थोड़ा भी नेगेटिव नहीं हुआ है मेरा मन। थोड़ा भी, किसी भी संजोग में नेगेटिव नहीं हुआ है। ये मन यदि पोज़िटिव हो जाएँ लोगों के, तो भगवान ही बन जाएँ। इसलिए लोगों से क्या कहता हूँ कि यह नेगेटिविटी छोड़ते जाओ, समभाव से निकाल करके। पोज़िटिव तो अपने आप रहेगा फिर। व्यवहार में पोज़िटिव और निश्चय में पोज़िटिव नहीं और नेगेटिव भी नहीं!
Reference: Book Excerpt: वाणी व्यवहार में... (Page #9 - Paragraph #4 to #6)
जगत् में पॉजिटिव ही सुख देगा
टेपरिकार्ड और ट्रान्समीटर ऐसे तो cए बड़े-बड़े लोगों को डर रहता है कि किसी ने कुछ टेप कर लिया तो? अब इसमें तो केवल शब्द टेप होते हैं उतना ही है, किंतु मनुष्य का बॉड़ी, मन, सबकुछ टेप हो सके ऐसा है। उसका लोगों को ज़रा-सा भी डर नहीं है। यदि सामनेवाला नींद में हो और आप कहें कि, ‘यह नालायक है’ तो उसके अंदर वह टेप हो गया, वह फिर उसको फल देगा। मतलब, अगर कोई सो रहा हो तो भी उसके लिए उलटा नहीं बोल सकते। एक शब्द भी नहीं बोल सकते क्योंकि सब टेप हो जाए ऐसी यह मशीनरी है। यदि बोलना चाहें, तो अच्छा बोलना कि ‘साहब, आप बहुत अच्छे मनुष्य हैं।’ अच्छा भाव रखना, तो उसके फल स्वरूप आपको सुख मिलेगा। मगर ज़रा-सा भी उलटा बोले, चाहे अँधेरे में या अकेले में भी बोले, तो उसका फल कड़वे ज़हर जैसा आएगा। यह सब टेप ही हो जाएगा, इसलिए अच्छा टेप करवाइए।
प्रश्नकर्ता: कड़वा तो चाहिए ही नहीं।
दादाश्री: यदि आपको कड़वा चाहिए तो कड़वा बोलना, और अगर नहीं चाहिए तो वैसा नहीं बोलना। कोई मारे तो भी उसे कड़वा मत बोलना, उससे कहना कि, ‘तेरा उपकार मानता हूँ।’
भगवान ने तो कहा है कि इस काल में यदि आपको कोई गाली दे गया हो तो उसे खुद खाने पर बुलाना। चाहे कितना भी बुरा हो फिर भी उसे क्षमा करना। यदि ‘रिवेन्ज’ (बदला) लेने गए तो फिर संसार में खींचे जाएँगे। इस काल में ‘रिवेन्ज’ लेने का नहीं होता। इस कलियुग में सिर्फ बुराईयाँ ही होती है। कौन-से विचार नहीं आएँगे यह कहा नहीं जा सकता। किसी भी हद तक के विचार आ सकते हैं। इस काल के जीव तो बहुत भटकनेवाले हैं। इन लोगों के साथ बैर बाँधें तो हमें भी भटकना पड़े। इसलिए हम कहते हैं, ‘सलाम साहब।’ इस काल में तुरंत क्षमा कर देना, वर्ना आप संसार में खींचे जाएँगे। क्योंकि यह जगत् तो बैर से खड़ा है।
इस काल में किसी को समझाने जैसा नहीं है। यदि समझाना आए तो अच्छे शब्दों में समझाइए, कि जिससे वह टेप होने पर भी खुद पर जिम्मेदारी नहीं आए। इसलिए पॉजिटिव रहना। यह जगत् पॉजिटिव पर ही खडा है। जगत् में ‘पॉजिटिव’ ही सुख देगा और ‘नेगेटिव’ सब दु:ख देगा। इसलिए यह कितनी बड़ी जोख़िमदारी है?
दो ही वस्तुएँ हैं, ‘पॉजिटिव’ और ‘नेगेटिव’। यदि ‘नेगेटिव’ रुख़ रखें तो कुदरत किसे ‘हैल्प’ करेगी? हमारे शब्दकोश में ‘नेगेटिव’ शब्द नहीं होना चाहिए।
Reference: दादावाणी - Sep 2009 (Page #19 - Paragraph #5 to 10, Page #20 - Paragraph #1)
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