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नेगेटिविटी से पॉज़िटिविटी की ओर

एक ही प्रसंग को देखने की दो अलग-अलग दृष्टि होती हैंI एक पॉज़िटिव दृष्टि और दूसरी नेगेटिव दृष्टि। पॉज़िटिव (हकारात्मक) दृष्टि यानी किसी भी परिस्थिति में अच्छा ढूँढ निकाले ऐसी समझ। जबकि नेगेटिव (नकारात्मक) दृष्टि का अर्थ है कि अनुकूल परिस्थितियों में भी उल्टा ढूँढ निकालने का रवैया। उदाहरण के लिए, किसी ने हमें आधा कप चाय दी हो, तो नेगेटिव दृष्टि वाला नाराज़ होगा कि “सिर्फ़ इतनी सी चाय?” जबकि पॉज़िटिव दृष्टि वाला व्यक्ति उल्टा सोचेगा कि "आधा कप तो आधा कप, लेकिन चाय तो मिली!"

नेगेटिव वह बुद्धि के पक्ष का है और पॉज़िटिव वह हृदय के पक्ष का है। देखने जाएँ तो संसार के सभी दुःख उल्टी यानी नेगेटिव दृष्टि से हैं, दुनिया में हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार ये सभी नेगेटिव कहलाते हैं। जबकि सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य ये सभी पॉज़िटिव कहलाते हैं।

हमारी अपनी दृष्टि में या हमारे आसपास के लोगों की दृष्टि में पॉज़िटिव और नेगेटिव दोनों हो सकते हैं। लेकिन आम तौर पर आज के समय में, नेगेटिव ज़्यादा देखने को मिलता है। हमारी दृष्टि पॉज़िटिव है या नेगेटिव? उसे कैसे पहचाना जाए? नेगेटिव किन कारणों से होता है? नेगेटिविटी का सामने वाले पर और हम पर क्या असर होता है? जीवन में हमेशा पॉज़िटिव कैसे रहें? पॉज़िटिविटी का पावर कैसा होता है? इन सभी प्रश्नों की विस्तार से विश्लेष्ण हमें यहाँ मिलेगा। जिसकी मदद से हम नेगेटिव से पॉज़िटिव की ओर मुड़ सकते हैं और जीवन में सुख-शांति का अनुभव कर सकते हैं।

नेगेटिव के सामने पॉज़िटिव निश्चय

जब अपेक्षाएँ पूरी नहीं होती और बुद्धि नेगेटिव बताती है तब हम उससे किस तरह बाहर निकले, जिससे हम हमारी सारी शक्तियाँ हमारे ध्येय प्राप्ति के लिए लगा सकें?

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Top Questions & Answers

  1. Q. नेगेटिविटी और पॉज़िटिविटी को कैसे पहचानें?

    A. पॉज़िटिव और नेगेटिव दृष्टि को पहचानने का थर्मोमीटर यह है कि जो दृष्टि दूसरों को दुःख दे, खुद को... Read More

  2. Q. क्यों पॉज़िटिविटी (सकारात्मकता) हमें सुख देती है और नेगेटिविटी (नकारात्मकता) दुःख?

    A. पॉज़िटिव ‘बोल’ के पॉज़िटिव असर! एक भाई ने मुझे पूछा कि, ‘आपके जैसी मीठी वाणी कब होगी?’ तब मैंने... Read More

  3. Q. पॉज़िटिव एवं नेगेटिव शब्दों का सामनेवालों पर तथा खुद पर क्या असर होता है? सामनेवाले की समझ की जाँच कर सकते हैं?

    A. सामने बड़ी उम्रवाला हो न, तो भी उसे कहेंगे, ‘आपमें अक्कल नहीं है।’ इनकी अक्कल नापने निकले! ऐसा बोला... Read More

  4. Q. आत्मज्ञान प्राप्त करने के पश्चात, नेगेटिव परिस्थिति में भी पॉज़िटिव देखने के लिए हमारी दृष्टि किस तरह से व्यापक होती है?

    A. संयोग सुधारकर भेजो दादाश्री: कैसी है आपकी माताजी की तबियत? प्रश्नकर्ता: यों तो अच्छी है, लेकिन कल... Read More

  5. Q. मेरे साथ क्यों ये नेगेटिव घटनाएँ घटी? पॉज़िटिव और नेगेटिव उर्जाएँ कैसे काम करती हैं?

    A. परिणाम नियमन किस शक्ति के आधार पर? प्रश्नकर्ता: मेरी पत्नी के साथ मेरा जीवन बहुत सुखी था, तो भगवान... Read More

  6. Q. पहले कोई नेगेटिव होता है, बाद में वह पॉज़िटिव बन जाता है। इसके पीछे क्या कारण है?

    A. करैक्ट पॉजिटिव पर आए, तब... प्रश्नकर्ता: दादाजी, ऐसा है कि सारी ज़िंदगी नेगेटिव ही देखा हो इसलिए... Read More

  7. Q. पॉज़िटिव अहंकार और नेगेटिव अहंकार क्या फल देता है?

    A. परिणाम ‘अहंकार’, पॉजिटिव में या नेगेटिव में यदि संक्षेप में कहना चाहें तो आरोपित भाव, ‘मैं... Read More

  8. Q. नेगेटिव विचारों की क्या सीमा होनी चाहिए?

    A. नेगेटिव सोचने की भी मर्यादा शक्तियाँ तो अंदर भरी पड़ी हैं। कोई कहे कि ‘मुझसे नहीं होगा’, तो वैसा हो... Read More

  9. Q. नेगेटिव विचारों को पॉज़िटिव विचारों द्वारा कैसे खत्म करें?

    A. नेगेटिव को उड़ा दीजिए पॉजिटिव से प्रश्नकर्ता: यदि पॉजिटिव विचार करे कि ‘मेरा अच्छा ही होनेवाला है,... Read More

  10. Q. क्या ओपन माइन्ड (खुला मन) पॉज़िटिव बनने में सहायरूप है? क्या ओपन माइन्ड पॉज़िटिव माइन्ड होता है?

    A. ऑपन माइन्ड है पॉजिटिव गुण जितना माइन्ड ओपन (खुला मन) रखे उतना समझे कहलाए। माइन्ड जितना ओपन हुआ... Read More

  11. Q. सारी परिस्थितियों को पॉज़िटिव तरीके से कैसे ले?

    A. सम्यक् दृष्टि से नुकसान में भी मुनाफ़ा महावीर भगवान ने अपने शिष्यों को सिखलाया था कि आप जब बाहर... Read More

  12. Q. आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद, क्या हमारा जीवन पॉज़िटिव हो जाता है?

    A. जागृति वही, जो दिखाए खुद के दोष प्रश्नकर्ता: ज्ञान मिलने के बाद जागृति आ जाती है उससे फिर... Read More

Spiritual Quotes

  1. जगत् में पोज़िटिव ही सुख देगा और नेगेटिव सभी दु:ख देगा।
  2. व्यापार की खबरें चार-पाँच दिनों से खराब आ रही हों और ऐसे में पोस्टमेन आता दिखाई दिया तो मन तुरंत दिखाएगा कि ‘आज वह क्या खबर लाया होगा?’ वहाँ हमें क्या करना है? पॉजिटिव रहना चाहिए, कि आज अच्छी खबर लाएगा। पोस्टमेन को बुलाने पर फिर खत में से मातम की खबर निकले तो उसे बाजू पर रख देना। मगर हमें तो पॉजिटिव ही रहना चाहिए।
  3. इस जगत् में हर एक बात को पॉज़िटिव लेना है। नेगेटिव की तरफ मुड़े कि खुद उल्टा चलेगा और सामनेवाले को भी उल्टा चलाएगा।
  4. एक ही चीज़ है कि हमें ‘पॉज़िटिव’ देखना है। जगत् ‘पॉज़िटिव’ और ‘नेगेटिव’ मार्ग पर है। कभी न कभी तो वह ‘नेगेटिव’ को ‘पॉज़िटिव’ करेगा। तो हम पहले से ही ‘पॉज़िटिव’ क्यों न रहें?
  5. नेगेटिव मिटाने में कितना समय व्यर्थ होता है, उसके बजाय ‘पॉज़िटिव’ में तुरंत ही ‘जॉइन्ट’ हो जाते हैं, ‘ऑटोमैटिक्ली’। अशुभ कर्मों को निकालने के लिए बेकार में समय क्यों बर्बाद करते हो?
  6. दो ही चीज़ें हैं - ‘पॉज़िटिव’ और ‘नेगेटिव’। ‘नेगेटिव’ रखेंगे तो कुदरत किसे ‘हेल्प’ करेगी? हमारी ‘डिक्शनेरी’ में ‘नेगेटिव’ (शब्द) नहीं होना चाहिए।
  7. हम ‘नेगेटिव’ को ‘पॉज़िटिव’ से जीतते हैं।
  8. ‘हाँ’ शब्द में बहुत ज़्यादा शक्ति है और ‘ना’ शब्द में बहुत अशक्ति है।
  9. ‘नो’ से जगत् अटका (रुका) हुआ है।
  10. ‘नो’ कहनेवाले पुद्गल पक्ष के हैं और ‘यस’ कहनेवाले मोक्ष पक्ष के हैं।
  11. सत्संग यानी सत् का योग होना, अच्छी चीज़ का, पॉज़िटिव चीज़ का योग होना वह। और नेगेटिव चीज़ का संयोग होना दु:खदायी है।
  12. बिल्कुल नेगेटिव बोले उससे अंतराय पड़ते हैं और पोज़िटिव से अंतराय नहीं पड़ते।
  13. हमेशा पोज़िटिव बोलो। भीतर आत्मा है, आत्मा की हाज़िरी है। इसलिए पोज़िटिव बोलो। पोज़िटिव में नेगेटिव नहीं बोलना चाहिए। पोज़िटिव हुआ, उसमें नेगेटिव बोलें, वह गुनाह है और पोज़िटिव में नेगेटिव बोलते हैं, इसलिए ये सारी मुश्किलें खड़ी होती हैं। ‘कुछ भी नहीं बिगड़ा है’ ऐसा बोलते ही भीतर कितना ही बदलाव हो जाता है। इसलिए पोज़िटिव बोलो।

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