प्रश्नकर्ता : आत्मा की प्रगति के लिए क्या करते रहना चाहिए?
दादाश्री : उसे प्रामाणिकता की निष्ठा पर चलना चाहिए। वह निष्ठा ऐसी कि बहुत तंगी में आ जाये तब आत्मशकित का आविर्भाव हो (प्रकट होना)। यदि तंगी नहीं हो और बहुत पैसे आदि हो तब वहाँ आत्मा प्रकट नहीं हो। प्रामाणिकता, एक ही रास्ता है। केवल भक्ति से कुछ हो सके ऐसा है नहीं, प्रामाणिकता नहीं हो और भक्ति करे उसका अर्थ नहीं है। प्रामाणिकता साथ में होनी ही चाहिए। प्रामाणिकता से मनुष्य फिर से मनुष्य जन्म पा सकता है। और जो लोग मिलावट करते हैं, जो बिना ह़क का ले लेते हैं, बिना ह़क का भोगतें हैं, वे सभी यहाँ से जानवर योनि में जाते हैं। उसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। क्योंकि स्वभाव ही बना है उसका बिना ह़क का भोगने का, इसलिए वहाँ जानवर में जाये और आराम से भोग सकें। वहाँ तो कोई किसी की औरत नहीं न! सभी औरतें खुद की ही! यहाँ मनुष्य में तो विवाहित लोग, इसलिए किसी की औरत पर दृष्टि बिगड़नी नहीं चाहिए मगर जिसे आदत-सी-हो गई हो, उसका फिर वहाँ जानवर में जाने पर ही समाधान होगा। एक अवतार, दो अवतार वहाँ भोगकर आये तब सीधा हो। उसे सीधा करते हैं ये सभी अवतार। सीधा होकर वापस यहाँ आये, फिर टेढ़ा हो तब फिर वहाँ भेजकर सीधा करे। इस प्रकार सीधा होते होते फिर मोक्ष के लायक हो जाये। टेढ़ा़इयाँ होगी वहाँ तक मोक्ष नहीं होता।
नीतिमय पैसे लाये उसमें हर्ज नहीं। पर अनीति के पैसे लाये तो समझो अपने ही पैरों पर कुल्हाडी मारी और अर्थी उठेगी तब पैसे यहाँ पडे़ रहेंगे। सब कुदरत की जप्ती में जायें और खुद ने यहाँ पर जो गुत्थियाँ उलझायी हो उसे फिर भुगतना पडे़गा।
भगवान को नहीं भजे और नीति से चले तो बहुत हो गया। भगवान को भजता हो पर नीति से नहीं चलता हो तो उसका अर्थ नहीं। वह मीनिंगलेस है। फिर भी हमें ऐसा नहीं कहना चाहिए। वरना, वह फिर भगवान को छोड़ देगा और अनीति बढा़ते रहेगा। अर्थात् नीति रखना। उसका फल अच्छा आये।
संसार में सुख एक ही जगह है। जहाँ संपूर्ण नीति हो। प्रत्येक व्यवहार में संपूर्ण नीति होगी वहाँ पर सुख है। और दूसरे, जो समाज सेवक होगा और वह खुद के लिए नहीं पर दूसरों के लिए जीवन व्यतीत करता हो तो उसे बहुत ही सुख होगा, पर वह सुख भौतिक सुख है, वह मूर्च्छा का सुख कहलाये।
ये वाक्य आपकी दुकान पर लिखकर लगवानाः
(१) प्राप्त को भुगतें-अप्राप्त की चिंता मत करें।
(२) भुगते उसकी भूल।
(३) डिस्ऑनेस्टी इज द बेस्ट फूलिशनेस।
सभी चीज़ें दुनिया में है। पर 'सकल पदार्थ है जगमांहि, भाग्यहीन नर पावत नहीं'। ऐसा कहते हैं न? अर्थात् जितनी कल्पना में आये उतनी चीज़ें संसार में होती है पर आपके अंतराय नहीं होने चाहिए, तभी वे मिलती हैं।
सत्यनिष्ठा चाहिए। ईश्वर कुछ मदद करने के लिए फालतु बैठे नहीं है। आपकी नीयत सच्ची होगी तभी आपका काम होगा।
लोग कहते हैं कि, 'सच्चे की ईश्वर मदद करता है!' पर नहीं, ऐसा नहीं है। ईश्वर सच्चे की मदद करता हो तो खोटे ने क्या गुनाह किया है? क्या ईश्वर पक्षपाती है? ईश्वर को तो सब जगह निष्पक्षपाती रहना चाहिए न? ईश्वर किसी की ऐसी मदद नहीं करता। वह इसमें हाथ ही नहीं डालता। ईश्वर का नाम याद करते ही आनंद होता है, उसकी वज़ह क्या है कि वह मूल वस्तु है, और खुद का ही स्वरूप है। इसलिए याद करते ही आनंद हो। बाकी ईश्वर कुछ करनेवाले नहीं है। वे कुछ दे ही नहीं सकते। उनके पास कुछ है ही नहीं, तो क्या देंगे?
Book Name: पैसों का व्यवहार (Page #33 Paragraph #6, #7, & Page #34, Page #35 Paragraph #1 to #4).
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