अनंतानुबंधी क्रोध: क्रोध से सामनेवाले व्यक्ति को ऐसे शब्द सुना दिए जिससे सामनेवाले का मन ऐसा टूट गया कि जिंदगीभर नहीं जुड़ेगा। ऐसे हमेशा के लिए मन टूट जाता है ऐसा क्रोध अर्थात् अनंतानुबंधी क्रोध। जो अनंत अवतार तक भटका दे वैसा यह क्रोध है। जैसे किसी पत्थर के टीले के बीच दरार पड़ जाए, एक फुट या दो फुट की, फिर उसमें बीच में चाहे जितनी चीजें गिरें तो भी मूल दरार हमेशा के लिए रहती है। उसी तरह सामनेवाले का मन टूट गया वह पूरी जिंदगी भर दोबारा नहीं जुड़ेगा। ऐसा तीव्र क्रोध अर्थात् अनंतानुबंधी क्रोध।
अप्रत्याख्यानी क्रोध: दूसरे प्रकार का क्रोध अर्थात् अप्रत्याख्यानी क्रोध। एक बार बहुत क्रोध से व्यक्ति को दुःख दे दिया गया हो और वह एक-दो साल तक हमारे साथ बात ना करे उसे अप्रत्याख्यानी क्रोध कहा गया है। जैसे खेत की जमीन में दरार पड़ गई हो और एकाद साल में भर जाए, उसी तरह साल-दो साल में सामनेवाले के घाव भर जाते हैं और वह अपना दुःख भूल जाता है। शास्त्रों की भाषा में क्रोध हो जाने के बाद करने वाले ने उसका पछतावा नहीं किया, पश्चाताप नहीं किया और इतने लंबे समय तक सामनेवाले को उसकी असर रही उस क्रोध को अप्रत्याख्यानी क्रोध कहा गया है।
प्रत्याख्यानी क्रोध: क्रोध करने के बाद खुद पछतावा करे और पंद्रह दिनों में सामनेवाला सब भूल जाए, दोनों फिर बोलने लग जाएँ तो यह प्रत्याख्यानी क्रोध कहलाएगा। जैसे समुद्र की रेत में लकीर खींचें तो वह कितनी देर में मिट जाती है? पवन आती है तो रेत जैसी थी फिर वैसी हो जाती है। उसी तरह, क्रोध का असर खत्म होने में घंटे-दो घंटे लग जाते हैं। व्यक्ति का मन कुछ दिनों में जुड़ जाए तो उसे प्रत्याख्यानी क्रोध कहा गया है।
संज्वलन क्रोध: सबसे कम तीव्रता वाला क्रोध जिसकी असर बहुत कम रहती है, उसे संज्वलन क्रोध कहा है। जैसे पानी में लकीर खींचे तो आगे लकीर खिंचती जाती है और पीछे वह मिटती जाती है। उसी तरह सामनेवाले को लगे नहीं ऐसा क्रोध अर्थात् संज्वलन क्रोध।
क्रोध का छोटा स्वरूप है नापसंद या ‘अरूचि’ होना। बाहर क्रोध न हो, लेकिन अंदर किसी के लिए द्वेष हो, अभाव हो, वह भी क्रोध का ही स्वरूप है।
कोई अपमान करे, हमें मान कम मिले या फिर हमारी मनमानी ना हो तब अंदर जो अकुलाहट होती है, अंदर अहंकार चिढ़ गया हो और उसे सहन करते रहें ये सभी क्रोध के ही प्रकार हैं।
बाहर इमोशनल होना, अपसेट होना, उतावला होना, ये सभी क्रोध के प्रकार हैं। इसी तरह सोल्यूशन ना आए तब अंदर घुटन या सफोकेसन होती है ये भी क्रोध के ही स्वरूप हैं।
हमें किसी की आदत जैसे कि, आवाज करके खाने की आदत, किसी की ब्रश करने की आदत, चुस्की लेकर चाय पीने की आदत, सोते समय खर्राटे लेने की आदत इत्यादि से इरीटेशन होती है, ये भी छोटे प्रकार के क्रोध हैं।
कढ़ापा यानी स्थूल क्रोध, जिसका बाहर सभी को पता चल जाता है। जबकि अजंपा यानी सूक्ष्म क्रोध, उसमें अंदर नेगेटिव या द्वेष होता है, जलन रहती है। अज्ञान दशा में अजंपा खुद को अकेले को जलाता है, जबकि कढ़ापा खुद को भी जलाता है और सामने वाले को भी जलाता है।
सत्तर साल के बूढ़े काका अगर रसोई में दो प्याले फूट गए हों और आवाज सुने, तो बोलते हैं, "यह क्या फूटा?" दो प्याले में जाने आत्मा फूट गई हो ऐसा कढ़ापा-अजंपा होता है। नौकर के हाथ से प्याला फूटा हो तो ”नौकर ही फोड़ते रहते हैं, आपका हाथ टूटा है?” ऐसा बोलते ही रहते हैं।
जिसका कढ़ापा-अजंपा बंद हो जाए तो वह व्यक्ति भगवान कहलाएगा। किसी का प्याला फूट जाए तो कढ़ापा-अजंपा होता है, तो किसी की पेन खो जाए तब कढ़ापा-अजंपा होता है। किसी की खुद की कार, ड्राइवर ने थोड़ी सी खराब कर डाली हो तो कढ़ापा-अजंपा होता है। किसी की खुद की डाइनिंग टेबल किसी ने खराब कर दी हो तो कढ़ापा-अजंपा हो जाता है। यानी मनुष्य को किसी न किसी कारण से कढ़ापा-अजंपा हुए बगैर रहता ही नहीं। पूरा दिन कढ़ापा-अजंपा ही करता रहता है और जिसका कढ़ापा-अजंपा गया, उसे जगत भगवान ही कहता है!
कढ़ापा और अजंपा इन दोनो में किसकी तीव्रता ज़्यादा है? परम पूज्य दादा भगवान कढ़ापा और अजंपा के बीच का स्पष्ट भेद दर्शाते हैं।
दादाश्री: हाँ, कढ़ापा बड़ा और भोला है, अजंपा, वह छोटा और कपटी है। यानी कढ़ापा करे तब लोग भी कहेंगे कि, 'भाई, दो प्याले टूट गएँ उसमें इतना सारा कढ़ापा किसलिए किया करते हो?' घर के लोग भी कहेंगे कि, 'भले ही टूट गया, आप बैठो न आराम से, जरा शांति रखो न!' कढ़ापा भोला है न, इसलिए लोग जान जाते हैं और अजंपा तो अंदर होता है।
कुछ सेठ लोग, आबरू नहीं जाए इसलिए कढ़ापा नहीं करते, लेकिन अंदर अजंपा किया करते हैं। जब कि वह अजंपा कपटी और छोटा है। इसलिए अगले अवतार के कतारबंध हिसाब बाँध देता है। यानी ये हस्ताक्षर करवा लेता है सभी। जिसे कढ़ापा होता है उसे अजंपा अंदर होता ही है, लेकिन केवल अंजपा ही हो वह तो बहुत अधिक जोखिम होता है।
लेकिन जब कढ़ापा और अंजपा दोनों बाँटकर खाते हों तब कढ़पा ज्यादा खा लेता है, यानी अजंपा के भाग में बहुत कम जाता है। लेकिन ये सेठ लोग कढ़ापा करते नहीं, सिर्फ अजंपा किया करते हैं। सेठ लोग समझते हैं कि ये सब लोग मेरी कमजोरी जान जाएँगे इसलिए सेठ लोग मुँह पर कढ़ापा नहीं करते, अंदर अजंपा किया करते हैं कि, 'ये महंगे दाम के प्याले तोड़ डाले। ये सब बैठे हैं, वे जाएँ तो नौकर को दो तमाचे लगा हूँ, इसे तो अब निकाल देना है।' ऐसा ही अंदर किया करते हैं।
यानी जिसके कढ़ापा-अजंपा गए, उसे तो भगवान ही कहा जाएगा। अब किसलिए इतना बड़ा पद कहा होगा? क्योंकि कोई भी मनुष्य कढ़ापा-अजंपा बगैर का नहीं होता, इसलिए कढ़ापा-अजंपा इतना ही शब्द जिसमें से गया वह भगवान कहलाता है। वह भगवान हमारा थर्मोमीटर!
उद्वेग क्रोध का ही प्रकार है। उद्वेग में सिर फटा-फटा सा लगता है, चैन ना पड़े, चेहरा अरंडी का तेल पीने जैसा हो जाए। जब खुद की धारणा के अनुसार नहीं होता, तब उद्वेग हो जाता है। उद्वेग पूरी रात सोने नहीं देता। जैसे कि, बिजनेस में कोई सौदा मंजूर हुआ हो और फिर सामनेवाला व्यक्ति पलट जाए तो "मेरा नफा चला गया!" ऐसा करके हमें उद्वेग होता है। बिजनेस में एक नुकसान तो हुआ और उद्वेग से दूसरा नुकसान खड़ा कर दिया। बुद्धि ही उद्वेग करवाती है।
उद्वेग बहुत जोखिमी है। उद्वेग में खुद का भान खो बैठता है और कितने कर्म बंध जाते हैं। एक क्षण के लिए भी उद्वेग में रहने जैसा नहीं है। परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं कि मनुष्य उद्वेग में आकर बड़े गुनाह कर डालता है।
प्रश्नकर्ता: मतभेद के कारण भी उद्वेग तो हो जाता है न?
दादाश्री: हाँ। मतभेद से ही उद्वेग होता है। जब सबकुछ ‘एक्सेस’ हो जाता है, उसके बाद उद्वेग शुरू हो जाता है। जब हद से बढ़ जाए तब। लोग छुरी भोंक देते हैं न, चाकू मारते हैं न! वे उद्वेग होने पर ही मारते हैं।
प्रश्नकर्ता: उद्वेग को अजंपा (बेचैनी, अशांति) कह सकते हैं?
दादाश्री: अजंपा तो बहुत अच्छा होता है। अजंपा तो, प्याला गिर जाए तब भी अजंपा होता है। अजंपा तो सरल होता है। उद्वेग तो ऐसा लगता है जैसे सिर में झटके लग रहे हो। जबकि अजंपा तो प्याले गिर जाएँ तो अजंपा और कढ़ापा (कुढऩ, क्लेश) होता रहता है। यह तो, बहुत बड़ा जोखिम हो गया हो तब उद्वेग होता है। ‘इमोशनल’ हुआ कि उद्वेग शुरू हो जाता है। उद्वेग तो उसे सोने भी नहीं देता न!
प्रश्नकर्ता: लेकिन ‘इमोशनल’ लोगों को चिंता अधिक होती है न?
दादाश्री: चिंता नहीं, उद्वेग बहुत होता है और वह उद्वेग तो मरने जैसा लगता है। ‘मोशन’ अर्थात् वेग में और ‘इमोशनल’ अर्थात् उद्वेग।
प्रश्नकर्ता: अब, वेग भी गति में है न?
दादाश्री: वेग तो निरंतर रहना ही चाहिए। वेग, ‘मोशन’ तो रहना ही चाहिए। जीव में वेग तो अवश्य होता ही है और तभी वह ‘मोशन’ में रहता है। किसी भी जीव में वेग अवश्य होता है। जो त्रस्त जीव हैं, यानी ऐसे जीव जो त्रस्त हो जाते हैं। यों हाथ लगाते ही भाग छूटते हैं, भाग जाते हैं। जिन्हें भय लगता है, उन सभी में वेग अवश्य होता है लेकिन जो एकेन्द्रिय जीव हैं, ये पेड़-पौधे हैं, उनमें वेग नहीं होता है। उनका वेग अलग प्रकार का होता है लेकिन बाकी सभी जीवों में तो यह वेग रहता ही है। वे वेग में तो रहते ही है, निरंतर ‘मोशन’ में। अगर उस सारे वेग को हिलाया तो ‘इमोशनल’ हो जाता है, वह उद्वेग कहलाता है। गाड़ी अगर ‘इमोशनल’ हो जाए तो क्या होगा?
प्रश्नकर्ता: नुकसान हो जाएगा। ‘एक्सिडन्ट’ हो जाएगा और लोग मर जाएँगे।
दादाश्री: उसी प्रकार से इस देह में भी अंदर बहुत जीव मर जाते हैं। उनकी जोखिमदारी आती है और फिर खुद के उद्वेग की वजह से दु:ख होता है, वह दूसरी जोखिमदारी है।
उद्वेग कैसा होता है? कि यहाँ से पटरी पर फिकवा देता है, नदी में गिरवा देता है, वर्ना दूसरा कुछ पी लेता है। उद्वेग अर्थात् वेग ऊपर चला जाता है, अंदर दिमाग़ में चढ़ जाता है और (रेल की पटरी पर) कूद जाता है। नहीं तो खटमल मारने की दवाई खाली कर देता है। ‘अरे, शीशी खाली कर दी?’ तब वह कहता है, ‘हाँ, मैं पी गया।’
उद्वेगवाला इंसान बच नहीं सकता। अरे, उद्वेग हो जाए तब तो यहाँ पर दर्शन करने भी नहीं आने देता। उद्वेग तो बहुत बड़ी चीज़ है। सभी ने तो उद्वेग देखा ही नहीं है न!
A. क्रोध यानि खुद अपने घर को माचिस से जलाना, जिसमें पहले खुद जलते हैं, फिर दूसरों को जलाते हैं। जैसे... Read More
Q. क्या गुस्सा कमज़ोरी है या ताकत?
A. प्रश्नकर्ता : तब फिर मेरा कोई अपमान करे और मैं शांति से बैठा रहूँ तो वह निर्बलता नहीं... Read More
Q. लोग क्रोधित क्यों हो जाते हैं?
A. आम तौर पर जब अपनी धारणा के अनुसार नहीं होता, हमारी बात सामनेवाला न समझे, डिफरेन्स ऑफ व्यूपोइन्ट हो... Read More
Q. हम हमारी क्रोध की समस्याओं को कैसे सुधारें?
A. प्रश्नकर्ता : हम से क्रोध हो जाए और गाली निकल जाए तो किस तरह सुधारें? दादाश्री : ऐसा है कि यह जो... Read More
Q. मैं क्रोध करते-करते थक गया हूँ। क्रोध से छुटकारा कैसे पाएँ?
A. लोग पूछते है, ''यह हमारे क्रोध का क्या इलाज करें?'' मैंने कहा, ''अभी आप क्या करते हैं?'' तब कहते... Read More
Q. अपने जीवन में हम क्रोध को कैसे दूर करें?
A. कुछ लोग जागृत होते हैं, वे कहते हैं कि यह क्रोध होता है वह हमें पसंद नहीं है, फिर भी करना पड़ता... Read More
Q. रिश्तों में क्रोध पर कैसे काबू पाएँ?
A. प्रश्नकर्ता : हम क्रोध किस पर करते हैं, ओफ़िस में सेक्रेटरी पर क्रोध नहीं करते और होस्पिटल में नर्स... Read More
Q. मैं अपने क्रोध को कैसे नियंत्रित करूँ?
A. प्रश्नकर्ता : मेरा कोई नज़दीकी रिश्तेदार हो, उस पर मैं क्रोधित हो जाता हूँ। वह उसकी दृष्टि से शायद... Read More
Q. क्या आप क्रोध से मुक्ति चाहते हैं? आत्मज्ञान पाएँ!
A. यह सब आप नहीं चलाते, क्रोध-मान-माया-लोभ आदि कषाय चलाते हैं। कषायों का ही राज है! 'खुद कौन है' उसका... Read More
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