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दूसरों की मदद क्यों करनी चाहिए?

यह लाइफ यदि परोपकार के लिए जाएगी तो आपको कोई भी कमी नहीं रहेगी। किसी तरह की आपको अड़चन नहीं आएगी। आपकी जो-जो इच्छाएँ हैं, वे सभी पूरी होगी और ऐसे उछल-कूद करोगे, तो एक भी इच्छा पूरी नहीं होगी। क्योंकि वह रीति, आपको नींद ही नहीं आने देगी। इन सेठों को तो नींद ही नहीं आती है, तीन-तीन, चार-चार दिन तक सो ही नहीं पाते, क्योंकि लूटपाट ही की है जिसकी-तिसकी।

इसलिए, ओब्लाइजिंग नेचर किया कि राह चलते-चलते, यहाँ पड़ोस में किसी को पूछते जाएँ कि भैया, मैं पोस्ट ऑफिस जा रहा हूँ। आपको कोई खत पोस्ट करना है? ऐसे पूछते-पूछते जाने में क्या कोई हर्ज है? कोई कहे कि मुझे तुझ पर विश्वास नहीं आता। तब कहें, भैया, पैर पड़ता हूँ। मगर दूसरे को विश्वास आए, तो उनका तो ले जाएँ।

यह तो मेरा बचपन का गुण था, वह मैं कहता हूँ। ओब्लाइजिंग नेचर और पच्चीस साल का हुआ तो मेरा सारा फ्रेन्ड सर्कल मुझे सुपर ह्युमन कहता था।

ह्युमन कौन कहलाए कि जो ले-दे, समान भाव से व्यवहार करे। सुख दिया हो, उसे सुख दे। दुःख दिया हो, उसे दुःख न दे। ऐसा सब व्यवहार करे, वह मानवता  कहलाती है।

इसीलिए जो सामनेवाले का सुख ले लेता है, वह पाशवता में जाता है। जो खुद सुख  देता है और सुख लेता है, ऐसा मानवीय व्यवहार करता है, वह मनुष्य पद में रहता है और जो खुद का सुख दूसरों को भोगने के लिए दे देता है, वह देवगति में जाता है, सुपर ह्युमन। खुद का सुख दूसरों को दे दे, किसी दुखी को, वह देवगति में जाता है।

 

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