जब ऐसा भान होगा कि सबकुछ सहज रूप से चल रहा है तब आत्मज्ञान होगा। सहज यानी क्या? बगैर प्रयत्न के चल रहा है। उसे ये लोग कहते हैं, ‘मैंने किया, मैंने किया!’
परम पूज्य दादा भगवानसहज अर्थात् संपूर्ण रूप से अप्रयत्न दशा। अप्रयत्न दशा से चाय आए, खाना आए तो हर्ज नहीं है।
परम पूज्य दादा भगवानप्रयास से सब उल्टा होता है। सहज रूप से होना चाहिए। प्रयास हुआ अर्थात् सहज नहीं रहा।
परम पूज्य दादा भगवानलक्ष्मी सहज भाव से प्राप्त हो रही हो, तो होने देना। लेकिन उस पर आधार मत रखना। आधार रखकर ‘चैन’ से बैठ जाओगे लेकिन आधार कब खिसक जाएगा, यह कहा नहीं जा सकता। अत: संभलकर चलना ताकि अशाता (दु:ख परिणाम) वेदनीय में हिल न जाओ।
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