पूरा जगत् सत्य की खोज में भटक रहा है। जो परमात्मा खुद में प्रकाशित हो चुके हैं, जो सत् हैं, उन्हें खोजना है।
परम पूज्य दादा भगवान‘सत्’ अविनाशी होता है और जगत् में जो धर्म चल रहे हैं, वह सब ‘रिलेटिव’ है, विनाशी है। ‘सत्य विज्ञान’ क्रियाकारी होता है जबकि बाहरी ज्ञान के लिए झंझट करनी पड़ती है।
परम पूज्य दादा भगवानइस जगत् को सत्य मानना और उसी में रमणता करना, वह अशुद्ध चित्त है, और इस जगत् का जो ज्ञान व दर्शन है, उसे यथार्थ नहीं मानना और यथार्थ वस्तु में रमणता रखना, वह शुद्ध चित्त है। शुद्ध चित्त ही शुद्धात्मा है।
परम पूज्य दादा भगवानसंसार निरंतर प्रकृति को ही पूजता है। यदि एक क्षण के लिए भी आत्मा को पूजे तो काम हो जाएगा। जो खुद विकल्पी है, वह निर्विकल्पी को कैसे भज सकता है? जब खुद निर्विकल्पी हो जाएगा तब आत्मा की भजना हो सकेगी। उसके अलावा बाकी सारी भजना प्राकृत सत्य है।
परम पूज्य दादा भगवानसत्य किसे कहते हैं? किसी जीव को वाणी से दु:ख न हो, वर्तन से दु:ख न हो और मन से भी उसके लिए खराब विचार न किए जाएँ, वह सब से बड़ा सत्य है! सब से बड़ा सिद्धांत है! यह ‘रियल’ सत्य नहीं है, यह अंतिम ‘व्यवहार सत्य’ है!
परम पूज्य दादा भगवानअहिंसा तो बहुत बड़ी चीज़ है। अहिंसा में अब्रह्मचर्य नहीं होता। अहिंसा में परिग्रह नहीं होता। अहिंसा में असत्य नहीं होता। अहिंसा में चोरी भी नहीं होती।
परम पूज्य दादा भगवान70 सालों से दाँतों को माँज रहे हैं, फिर भी स्वच्छ नहीं हुए तो वह चीज़ सही है या गलत?
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