संसार में अनेक तरह के उपादान हैं, लेकिन सब से अंतिम उपादान, मोक्ष का उपादान, खुद का स्वरूप, शुद्धात्मा है!
परम पूज्य दादा भगवानभगवान प्रत्येक जीव में विराजमान हैं, चेतन के रूप में। इसका भान ही नहीं है। वह चेतन ही परमेश्वर है। ‘शुद्ध चेतन’ यानी शुद्धात्मा, वही परमात्मा !
परम पूज्य दादा भगवानअहंकार के केन्द्र से संसार के सभी लक्ष्य सुंदर बैठते हैं! अहंकार के केन्द्र से ‘शुद्धात्मा’ का लक्ष्य नहीं बैठ सकता!
परम पूज्य दादा भगवानव्यवहार अर्थात् सुपरफ्लुअस। व्यवहार में लोग जो बोलते हैं, वे ‘फुल स्टॉप’ लगाते हैं लेकिन नहीं, व्यवहार में तो ‘कॉमा’ होता है। वहाँ पर लोगों ने ‘फुल स्टॉप’ लगा दिया। ‘मैं चंदूभाई हूँ’ वहाँ ‘कॉमा’ होता है और ‘मैं शुद्धात्मा हूँ’ वहाँ ‘फुल स्टॉप’ होता है।
परम पूज्य दादा भगवानप्रभु का साम्राज्य, शुद्धात्मा का साम्राज्य है वहाँ कुछ भी इधर-उधर नहीं हो सकता। पेट का पानी तक नहीं हिलता। बुखार आए, देह छूटने लगे, देह रहनेवाली हो तब भी भीतर विचलित नहीं होता। कोई दखलंदाज़ी ही नहीं। खुद का क्या जाएगा? जाएगा तो पड़ोसी का जाएगा!
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