‘कुढ़न-अजंपा’ नहीं हो, वही अंतरंग शांति है। यदि बहिरंग के साथ चित्त एकाग्र हो जाए तो अंतरंग टूट जाता है। बहिरंग से तो यह सारा जगत् खड़ा हो गया है!
परम पूज्य दादा भगवानये लोग किच-किच करके खुद की सिद्धियाँ गँवा बैठते हैं, इसलिए ‘जैसा है वैसा’ जानो। इन सभी सगाइयों को लौकिक जानो, उन्हें अलौकिक सगाइयाँ मत मानना। ऐसी कोई खोज निकालो कि इस पज़ल में ही शांति से रह पाएँ। वह खोज आपके भीतर ही करनी है।
परम पूज्य दादा भगवानव्यवहार का संपूर्ण सार कुछ है तो वह नीति है। नीति होगी और पैसे कम होंगे, तब भी आपको शांति रहेगी। और नीति नहीं होगी और पैसे बहुत होंगे तो भी अशांति रहेगी।
परम पूज्य दादा भगवानआनंद और शांति का कोई लेना-देना नहीं है। शांति पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) के अधीन है और आनंद तो आत्मा का स्वभाव है।
परम पूज्य दादा भगवानआत्मा और ज्ञान हमेशा भीड़ में रहते हैं, एकांत में नहीं। एकांत में शांति होती है, ज्ञान नहीं।
परम पूज्य दादा भगवानजहाँ संपत्ति में शांति नहीं है, वहाँ विपत्ति में कहाँ से शांति होगी? विपत्ति-संपत्ति में सुख नहीं है, निष्पत्ति में सुख है।
परम पूज्य दादा भगवानजिससे जगत् विस्मृत रहे, दिमाग़ पर बोझ नहीं रहे, शांति रहे, ‘रियल’ और ‘रिलेटिव’ अलग रहें, वही अपनी स्वतंत्रता है!
परम पूज्य दादा भगवानमैं मेरा एक ही तरह का ‘प्रोडक्शन’ रखता हूँ! ‘पूरा जगत् परम शांति प्राप्त करे और कुछ मोक्ष प्राप्त करें!’ क्या मुझे उसका ‘बाय प्रोडक्शन फ्री ऑफ कोस्ट’ नहीं मिलता? मिलता ही रहता है न!
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