वीतरागों के ‘साइन्स’ की यह बहुत बड़ी खोज है! कैसा गूढ़ार्थ! अत्यंत गुह्य! यह ‘रियल’ और यह ‘रिलेटिव’, दोनों में भेद डालना, वह ‘ज्ञानी पुरुष’ के अलावा अन्य किसी का काम ही नहीं है न!
परम पूज्य दादा भगवानकृष्ण भगवान की फोटो के दर्शन करने से वह ‘रिलेटिव’ को पहुँचता है। ‘यहाँ’ नमस्कार करते हैं, तो वह ‘डायरेक्ट’ उनके आत्मा को ही पहुँचता है। क्योंकि वीतराग स्वीकार नहीं करते हैं न? हमेशा ही जहाँ ‘रिलेटिव’ और ‘रियल’ दोनों दर्शन किए जाएँ, वहीं पर मोक्ष है।
परम पूज्य दादा भगवान‘रिलेटिव’ में आप आपत्ति खड़ी करोगे तो वह बुद्धिवाद है। ‘हममें’ बुद्धिवाद नहीं है। ‘हम’ तो ‘रिलेटिव’ में अबुध हैं और ‘रियल’ में ‘ज्ञानी’।
परम पूज्य दादा भगवानबाहर की जो चीज़ें हैं वे नैमित्तिक हैं, ‘रिलेटिव’ हैं, विनाशी हैं। नैमित्तिक यानी उसमें किसी का चले, ऐसा नहीं है। वह स्व-वश नहीं करता है, परसत्ता के आधीन है। फिर आपको आपत्ति उठाने का रहा ही कहाँ? कभी न कभी आपत्ति रहित होना ही पड़ेगा।
परम पूज्य दादा भगवानसच्ची बात है वहाँ उलझन नहीं है और सच्ची बात नहीं है वहाँ खिलौनों से खेलने की उलझन में ही है।
परम पूज्य दादा भगवानव्यवहार क्या है? इतना ही यदि समझ जाए तो भी मोक्ष हो जाए। पूरा व्यवहार ‘रिलेटिव’ है। ‘ALL THESE RELATIVES ARE TEMPORARY ADJUST-MENTS.’
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