संसार अर्थात् जो निरंतर परिवर्तित होता ही रहता है! वहाँ ‘ऐसा हो जाएगा या वैसा हो जाएगा’ ऐसा करने की क्या ज़रूरत है? आज भाव दिखाएगा और कल अभाव दिखाएगा, उस पर मोह कैसा? त्रिकाली वस्तु जो कि खुद का ‘स्वरूप’ है, उस पर मोह करने योग्य है और ‘स्वरूप का भान’ करवानेवाले ‘ज्ञानीपुरुष’ पर भाव करने योग्य है। उनमें कभी बदलाव नहीं आता।
परम पूज्य दादा भगवानsubscribe your email for our latest news and events