आत्मा अरूपी है। इन आँखों से जो दिखार्ई देता है, वह तो सारी भ्रांति है। यथार्थ तो ‘दिव्यचक्षु’ से दिखाई देता है कि, ‘ये भगवान हैं और ये भगवान नहीं हैं’। दोनों भाग अलग दिखाई देते हैं। भगवान अमूर्त हैं। अत: आँखों से, रूपी चीज़ों से वे नहीं दिखाई देते। भगवान अरूपी ज्ञान से समझे जा सकते हैं, चारित्र से पहचाने जाते हैं।
परम पूज्य दादा भगवान‘ज्ञानी पुरुष’ तो मूर्तिमान मोक्ष स्वरूप कहे जाते हैं! मूर्तिमान मोक्ष परम सत् कहलाता है। परम सत् के संग में यों ही बैठे रहें, तब भी वह परम सत्संग है! उसका फल मिलता ही रहता है!
परम पूज्य दादा भगवानमन्नत किससे माँगनी चाहिए? मूर्ति की मन्नत माँगनी चाहिए। क्योंकि मूर्ति का मालिक नहीं होता, जीवित से मन्नत माँग सकते हैं लेकिन देह का मालिक हो तो उससे मन्नत नहीं माँग सकते, क्योंकि एक दिन वह ठोकर मारेगी।
परम पूज्य दादा भगवानसभी धर्म इसलिए हैं ताकि चित्त संसार से बाहर रहे, असंसारी दशा में रहे, इसीलिए चित्त को मूर्ति में रखते हैं, चित्त को चक्रपर स्थिर करते हैं लेकिन उसका किसी एक जगह पर स्थिर रहना मुश्किल है। लोग मूर्ति में चित्त रखते हैं लेकिन उससे चित्त भगवान में नहीं रहता बल्कि उतने समय तक चित्त संसार में नहीं रहता इसलिए संसार हल्का हो जाता है जबकि ‘अपना’ चित्त तो भगवान में ही रहता है।
परम पूज्य दादा भगवानजब तक आत्मा का भान नहीं हुआ है, तब तक वीतरागों की मूर्ति की आराधना करो। मूर्ति आपको समकित तक ले जाएगी! क्योंकि उसके पीछे शासन देवी-देवता हैं।
परम पूज्य दादा भगवानमूर्तियाँ क्यों रखी गई हैं? उनके पीछे क्या भावना है? ‘‘साहब, आप सनातन सुख वाले हैं और मैं तो ‘टेम्परेरी’ सुख वाला हूँ। मुझे भी सनातन सुख पाने की इच्छा है।’’ भगवान सनातन सुख वाले हैं, तभी तो देखो न, मूर्ति में रहने के बावजूद भी, हम से ज़्यादा सुंदर दिखाई देते हैं। मानो! देखते ही रहें!
परम पूज्य दादा भगवानहम जब भगवान की मूर्ति के दर्शन करते हैं, तब मूर्ति क्या करती है? ‘भाई, यह मेरा माल नहीं है, यह माल, तेरे ही शुद्धात्मा का है।’ तो मूर्ति आपके शुद्धात्मा को वह वापस दे देती है। इसे परोक्ष भक्ति कहते हैं
परम पूज्य दादा भगवानपरोक्ष भक्ति मतलब क्या है? खुद जिनकी भक्ति करता है, वास्तव में वह उनकी नहीं करता, बल्कि खुद के आत्मा की ही करता है! अगर ये मंदिर और मूर्तियाँ नहीं होते तो हिन्दुस्तान के लोगों को भगवान याद ही नहीं आते!
परम पूज्य दादा भगवानसन्यासी मतलब संसार में मूर्ति स्वरूप (सशरीर) दिखाई देते हैं लेकिन मूर्ति स्वरूप होते नहीं हैं।
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