आप यदि सही हो तो दुनिया में कोई आपका नाम देनेवाला नहीं है। यदि आप जगत् में किसी को दुःख नहीं देते हो, किसी को दुःख देने की आपकी भावना नहीं है, तो आपको कोई दुःख दे सके ऐसा नहीं है।
परम पूज्य दादा भगवानसंसार अर्थात् जो निरंतर परिवर्तित होता ही रहता है! वहाँ ‘ऐसा हो जाएगा या वैसा हो जाएगा’ ऐसा करने की क्या ज़रूरत है? आज भाव दिखाएगा और कल अभाव दिखाएगा, उस पर मोह कैसा? त्रिकाली वस्तु जो कि खुद का ‘स्वरूप’ है, उस पर मोह करने योग्य है और ‘स्वरूप का भान’ करवानेवाले ‘ज्ञानीपुरुष’ पर भाव करने योग्य है। उनमें कभी बदलाव नहीं आता।
परम पूज्य दादा भगवानकिसी भी चीज़ को ‘निज’ स्वभाव में जाने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती। विशेष भाव में ले जाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है! पानी को गरम करना हो तो कितनी मेहनत करनी पड़ती है? अगर ठंडा करना हो तो? कुछ भी नहीं करना पड़ता क्योंकि वह उसका स्वभाव ही है! उसी प्रकार आत्मा स्वभाविक रूप से मोक्ष स्वरूप है। इसलिए ‘ज्ञानीपुरुष’ कृपा करके रास्ता बना देते हैं। ‘ज्ञानी’ की आज्ञा में रहने से मोक्ष होता है, कुछ मेहनत नहीं करनी पड़ती। मेहनत से तो यह संसार खड़ा होता है। जप-तप किए थे, उसी से तो यह सारा फल मिल रहा है।
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