आत्मा खुद ही परमात्मा है। वह तप स्वरूप नहीं है, जप स्वरूप भी नहीं है। बाकी की ये सारी कल्पनाएँ हैं। ‘स्वरूप का भान’ होने के बाद ही ये अन्य सारे संयोग बंद हो जाते हैं।
परम पूज्य दादा भगवानजिसकी देह संयमित, मन संयमित और वाणी संयमित हो गई वह खुद परमात्मा बन गया!
परम पूज्य दादा भगवानलोग परमात्मा को मानते हैं क्या? नहीं? और गोपनीय काम भी करते हैं, है न? जो परमात्मा तेरी सभी क्रियाएँ जानते हैं, उनसे गोपनीय कैसे रख सकते हैं? भगवान को यदि पहचानना हो तो फिर गोपनीय काम नहीं करने चाहिए।
परम पूज्य दादा भगवानदुःख आएँ ही क्यों? खुद परमात्मा है उसे दुःख कैसा? अहंकार ही दुःख खड़ा करता है और जो भुगतता है, वह भी अहंकार ही है! परमात्मा कुछ भी नहीं भुगतते!
परम पूज्य दादा भगवानsubscribe your email for our latest news and events