सर्व दुःखों से मुक्ति हो जाए, उसका नाम यथार्थ धर्म। अहंकार जाए, ‘रोंग बिलीफें’ जाएँ, वह यथार्थ धर्म है। यथार्थ धर्म रोंग बिलीफों सहित नहीं होता।
परम पूज्य दादा भगवानक्रोध-मान-माया-लोभ होने लगें तो होने देना, कुचारित्र के विचार आएँ तो उसमें हर्ज़ नहीं है, घबराना नहीं। लेकिन उन्हें ‘यों’ प्रतिक्रमण करके पलट देना। उससे बहुत ही उच्च धर्मध्यान होगा!
परम पूज्य दादा भगवानभगवान ने धर्म किसे कहा है? त्याग को धर्म नहीं कहा। कषाय रहित होना उसे धर्म कहा है अथवा फिर मंद कषाय को धर्म कहा है। बस, इन दो ही चीज़ों को धर्म कहा है।
परम पूज्य दादा भगवानस्यादवाद वाणी की भूमिका कब उत्पन्न होती है? तब, जब अहंकार शून्य हो जाता है, पूरा जगत् निर्दोष दिखाई देता है, किसी जीव का किंचित्मात्र भी दोष नहीं दिखाई देता है, किंचित्मात्र भी किसी धर्म का प्रमाण आहत नहीं होता।
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