अपने दृष्टि दोष को जो कम करे, वही धर्म है। जो दृष्टि दोष को बढ़ाए, वह अधर्म है। यह संसार दृष्टि दोष का ही परिणाम है।
परम पूज्य दादा भगवानजब प्रेमस्वरूप बनोगे तब लोग आपकी सुनेंगे। ‘प्रेमस्वरूप’ कब हुआ जाता है? कायदे-कानून नहीं खोजोगे तब। जगत् में किसी का भी दोष नहीं देखोगे तब।
परम पूज्य दादा भगवानजब दृष्टि सीधी हो जाए तब खुद के ही दोष दिखते हैं, और अगर दृष्टि उल्टी हो तब सामनेवाले के दोष दिखते हैं।
परम पूज्य दादा भगवानस्यादवाद वाणी की भूमिका कब उत्पन्न होती है? तब, जब अहंकार शून्य हो जाता है, पूरा जगत् निर्दोष दिखाई देता है, किसी जीव का किंचित्मात्र भी दोष नहीं दिखाई देता है, किंचित्मात्र भी किसी धर्म का प्रमाण आहत नहीं होता।
परम पूज्य दादा भगवानइस दुनिया में आईने नहीं होते तो खुद के चेहरे को ‘एक्ज़ेक्ट’ देखना, वह सब से बड़ा आश्चर्य माना जाता।
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