जब दृष्टि सीधी हो जाए तब खुद के ही दोष दिखते हैं, और अगर दृष्टि उल्टी हो तब सामनेवाले के दोष दिखते हैं।
परम पूज्य दादा भगवानस्यादवाद वाणी की भूमिका कब उत्पन्न होती है? तब, जब अहंकार शून्य हो जाता है, पूरा जगत् निर्दोष दिखाई देता है, किसी जीव का किंचित्मात्र भी दोष नहीं दिखाई देता है, किंचित्मात्र भी किसी धर्म का प्रमाण आहत नहीं होता।
परम पूज्य दादा भगवानइस दुनिया में आईने नहीं होते तो खुद के चेहरे को ‘एक्ज़ेक्ट’ देखना, वह सब से बड़ा आश्चर्य माना जाता।
परम पूज्य दादा भगवानइस जगत् में दो ही चीज़ें समझनी हैं। एक खुद का निज स्वरूप और दूसरा हमारी जो पहले की गुनहगारी है, वह। मतलब, गुनहगारी खत्म तो करनी पड़ेगी न?
परम पूज्य दादा भगवानहमें तो अगर कोई कहने आए कि, ‘ये व्यक्ति ऐसे हैं,’ तो पहले मैं कहनेवाले को ही पकडूँगा कि ‘तू क्यों मुझ से ऐसा कहने आया?’ तू कहने आया इसलिए तू ही गुनहगार है। पूछे बगैर यदि कोई कुछ कहने आए तो वह हमें रद्द ही कर देना चाहिए।
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