दान यानी अन्य किसी भी जीव को सुख पहुँचाना। मनुष्य हो या अन्य प्राणी हो, उन्हें सुख पहुँचाना, वह दान कहलाता है। और सब को सुख पहुँचाया तो उसके ‘रिएक्शन’ में हमें सुख ही मिलेगा। सुख पहुँचाया तो तुरंत ही घर बैठे आपको सुख ही मिलेगा!
परम पूज्य दादा भगवान‘वीतराग’ को दान लेने या देने का मोह नहीं होता। वे तो ‘शुद्ध उपयोगी’ होते हैं।
परम पूज्य दादा भगवानसमकित के बगैर जो कुछ किया जाए, वह सब बंधन ही है। फिर भले ही दान दे रहा हो या दया कर रहा हो।
परम पूज्य दादा भगवानजगत् एकात्मकतावालाहै ही नहीं। वह तो जब ‘ज्ञानीपुरुष’ मोक्ष का दान दें, तभी एकात्मकता रहती है। ‘ज्ञान’ के बगैर एकात्मकता नहीं रह सकती।
परम पूज्य दादा भगवानजब ‘हम’ ज्ञान देते हैं, तब चित्त को शुद्ध कर देते हैं! पाप का नाश कर देते हैं और दिव्यचक्षु प्रदान करते हैं। हर तरह से उसके आत्मा और अनात्मा को अलग कर देते हैं!
परम पूज्य दादा भगवानयदि दान देने वाले से कहें, ‘आप बेवकूफी वाला उल्टा काम कर रहे हो’। तो वह कहेगा कि, ‘यह रहा दान-वान’।वह है ‘चारित्रमोह’।
परम पूज्य दादा भगवानआत्मशक्ति की लंबाई का कोई अंत ही नहीं है! लंबाई इतनी है कि हर एक व्यक्ति के विचारों को ‘एक्सेप्ट’ करती है। यदि चोर चोरी करे तो उसे भी ‘एक्सेप्ट’ करती है, दानेश्वरी दान दे तो उसे भी ‘एक्सेप्ट’ करती है। आत्मशक्ति ऐसी है कि सबकुछ ‘एक्सेप्ट’ करती है। वही परमात्म शक्ति है और वही आत्मा है!
परम पूज्य दादा भगवानशुद्ध व्यवहार पूर्ण धर्मध्यान प्रदान करता है। सद्व्यवहार अल्पांश धर्मध्यान प्रदान करता है।
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