संसार स्वार्थ का सगा है। सभी ‘रिलेटिव’ सगाइयाँ हैं। सिर्फ ‘ज्ञानीपुरूष’ की ही एक ‘रियल’ सगाई है। वे आपके प्रति अत्यंत करुणावाले होते हैं। वे खुद आत्म स्वरूप हुए हैं इसलिए आप का हल ला देते हैं!
परम पूज्य दादा भगवानकरुणा वह सामान्य भाव है और अगर वह सभी जगह बरतता रहता है कि ‘सांसारिक दु:खों से यह जगत् फँसा है, वे दु:ख कैसे जाएगा?
परम पूज्य दादा भगवानवीतराग किसे कहते हैं? जो किसी के दु:ख से दु:खी नहीं होते। वीतराग में करुणा होती है! दयालु दु:खी होता है, करुणा वाला दु:खी नहीं होता। दया द्वंद्व गुण है। दया के सामने निर्दयता रहती ही है।
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