कुदरत के घर पर तो निश्चय में दुःख नहीं है और व्यवहार में भी दुःख नहीं है। पूरे जगत् को इतना समझ में नहीं आने से व्यवहार दुःखदायी हो गया है। उसे व्यवहार नहीं आता है। व्यवहार निर्लेप होना चाहिए, निर्लेप व्यवहार हो जाने पर फिर आनंद की सीमा नहीं रहती।
परम पूज्य दादा भगवानजो भगवान की ओर चेहरा घुमाए, उनकी ओर मुड़े, उसे आनंद और प्रकाश मिलता है। भगवान और कुछ भी नहीं करते।
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