जब तक स्वार्थ रहता है, तब तक एकजुटता नहीं हो पाती। परमार्थ हो तभी एकात्मकता हो सकती है।
परम पूज्य दादा भगवानभीतर आत्मा बैठा है। उस पर यदि श्रद्धा हो तो इस जगत् में हर चीज़ आपके पास आए ऐसा है।
परम पूज्य दादा भगवानअगर आप कहो कि, ‘मैं अब वृद्ध दिखने लगा हूँ’, तो वैसे ही दिखने की शुरूआत हो जाती है। आप कहो कि, ‘नहीं, अब मैं युवक जैसा दिखता हूँ’, तो वैसा दिखने की शुरूआत हो जाती है। जैसी कल्पना करेंगे वैसा दिखाई देगा। आत्मा कल्पस्वरूप है और विकल्प करें तो फिर संसार खड़ा हो जाता है। निर्विकल्प में आ जाएँ तो ‘मूल स्वरूप’ में आ सकते हैं।
परम पूज्य दादा भगवान‘कोई जीव, किसी जीव में किंचित्मात्र दखलंदाज़ी नहीं कर सकता’ यह सिद्धांत यदि कोई समझ जाए तो वह खुद स्वतंत्र हो जाए!
परम पूज्य दादा भगवानजब तक आपके ध्यान में ऐसा रहेगा कि ‘शेर हिंसक है’, तब तक वह हिंसक ही रहेगा और ‘शेर शुद्धात्मा है’ ऐसा ध्यान में रहेगा तो वह हिंसक नहीं रहेगा। कुछ भी हो सकता है!
परम पूज्य दादा भगवानजिनके ‘आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान’ सही हैं, उसे आत्मा प्राप्त हुए बगैर रहेगा ही नहीं।
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