आत्मा में परम सुख ही है। लेकिन कलुषित भाव के कारण सुख पर आवरण आ जाता है।
परम पूज्य दादा भगवानजब तक स्वार्थ रहता है, तब तक एकजुटता नहीं हो पाती। परमार्थ हो तभी एकात्मकता हो सकती है।
परम पूज्य दादा भगवानभीतर आत्मा बैठा है। उस पर यदि श्रद्धा हो तो इस जगत् में हर चीज़ आपके पास आए ऐसा है।
परम पूज्य दादा भगवानअगर आप कहो कि, ‘मैं अब वृद्ध दिखने लगा हूँ’, तो वैसे ही दिखने की शुरूआत हो जाती है। आप कहो कि, ‘नहीं, अब मैं युवक जैसा दिखता हूँ’, तो वैसा दिखने की शुरूआत हो जाती है। जैसी कल्पना करेंगे वैसा दिखाई देगा। आत्मा कल्पस्वरूप है और विकल्प करें तो फिर संसार खड़ा हो जाता है। निर्विकल्प में आ जाएँ तो ‘मूल स्वरूप’ में आ सकते हैं।
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