अध्यात्म जान लेना तो उसे कहते हैं कि जहाँ पर प्रतिदिन क्रोध-मान-माया-लोभ कम ही होते जाएँ, बढ़ें नहीं।
परम पूज्य दादा भगवान‘अध्यात्म में प्रवेश हुआ’ कब कहलाता है? ‘मैं इससे (देह से) कुछ अलग हूँ’ जब उसे ऐसा आभास होता है, तभी से अध्यात्म की शुरुआत होती है। और देहाध्यास खत्म हो जाने पर अध्यात्म पूर्ण हो जाता है!
परम पूज्य दादा भगवानचिंता ‘वरीज़’, दु:ख वगैरह अध्यात्म के ‘डेवेलपमेन्ट’ (विकास) में ‘हेल्पिंग’ (सहायक) हैं।
परम पूज्य दादा भगवानअध्यात्म एक ऐसा मार्ग है जहाँ पर भौतिक सुखों की आशा कम करते-करते आगे बढऩा है! और अंत में वहाँ पर खुद का स्वयं सुख उत्पन्न होता है! खुद का सच्चा सुख, सनातन सुख उत्पन्न होता है!
परम पूज्य दादा भगवानभगवान की वजह से प्रकृति उत्पन्न होती है और प्रकृति से ‘साइन्स’ उत्पन्न होता है। प्रकृति पूरण-गलन स्वभाव वाली है, जबकि आत्मा पूरण-गलन स्वभाव वाला नहीं है।
परम पूज्य दादा भगवानयदि प्रकृति नहीं सुधरे तो उसमें हर्ज नहीं है, तू अपने ‘भीतर’ सुधार न! फिर ‘रिस्पोन्सिबिलिटी’(ज़िम्मेदारी) नहीं रहेगी। इतना ही ‘साइन्स’ ‘मैं’ समझाना चाहता हूँ।
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