हिंसक भाव अर्थात् ज़रा सा भी, किंचित्मात्र भी हिंसा करना या किसी को नुकसान पहुँचाना, किसी पर गुस्सा होना, दु:ख देना, पीड़ा देना। पहले ऐसे भाव खत्म हो जाने चाहिए।
परम पूज्य दादा भगवानयह पूरा जगत् नैमित्तिक है। इस जगत् में कोई कर्ता हुआ ही नहीं है और कोई कर्ता पैदा भी नहीं हुआ है। भ्रांति से कर्ता बनता है, उससे कैसे-कैसे कर्म चिपकते हैं!
परम पूज्य दादा भगवानसद्भाव किया जाए, उच्च भाव किया जाए, वह ‘पॉज़िटिव’ पुरुषार्थ है। उससे ऊर्ध्वगति होती है। उल्टा भाव करे तो वह ‘नेगेटिव’ पुरुषार्थ है। उससे अधोगति में जाता है। और वास्तविक पुरुषार्थ तो, ‘खुद’ पुरुष होकर करे तो मोक्ष में जाता है!
परम पूज्य दादा भगवानआजकल घर में ज़्यादातर झगड़े शंका की वजह से होते हैं। शंका से स्पंदन उठते हैं और उन स्पंदनों से विस्फोट होते हैं। यदि निःशंक हो जाए तो अपने आप ही लपटें शांत हो जाएँगी। दोनों ही यदि शंकाशील हो जाएँ तो विस्फोट कैसे रुकेंगे? किसी एक को तो निःशंक होना ही होगा!
परम पूज्य दादा भगवानजड़ में कभी भी ‘चेतन’ नहीं होता और चेतन में कभी भी जड़ नहीं होता। सिर्फ यह शरीर ही ‘मिश्र चेतन’ है। चेतन जैसा काम करता है, लेकिन वास्तव में चेतन नहीं है! वस्तुत्व का भान भेदविज्ञान से होता है। जड़ और चेतन में भेद डल जाता है।
परम पूज्य दादा भगवानआत्मा का अस्तित्व है, थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी, आत्मा का वस्तुत्व है, थ्योरी ऑफ रियलिटी और आत्मा का पूर्णत्व है, थ्योरी ऑफ एब्सल्यूटिज़म। ‘हम’ ‘थ्योरम ऑफ एब्सल्यूटिज़म’ में हैं!
परम पूज्य दादा भगवानसांसारिक विचार घुस गए हैं। उन्हें वापस निकाल दिया जाए तो केवलज्ञान! जितना लिया है, उतना वापस दे दिया तो केवलज्ञान! केवलज्ञान अर्थात् क्या? जितना लिया, उतना दे देना! इतनी सी बात है!
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