आध्यात्मिक कोटेशन

निजी बात करना निंदा कहलाता है। बात को सामान्य रूप से समझना होता है। निंदा करना तो अधोगति में जाने की निशानी है।

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वचनबल कैसे प्राप्त होता है? एक भी शब्द का उपयोग मज़ाक के लिए नहीं किया हो, एक भी शब्द का उपयोग झूठे स्वार्थ या किसी से कुछ ऐंठने के लिए नहीं हुआ हो, वाणी का दुरुपयोग नहीं किया हो, खुद का मान बढ़ाने के हेतु से वाणी का उपयोग नहीं किया हो, तब वचनबल सिद्ध होता है!

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ऊब जाए तभी खोजबीन करने का समय आता है। तभी पुरुषार्थ करने का सही समय आता है। जबकि लोग उसे पीछे धकेलते हैं!

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सत्ता का इस्तेमाल करने से खुद को ‘डिप्रेशन’ आता है। सत्ता सुख पहुँचाने के लिए है। सत्ता तो गुनहगार को भी सुख पहुँचाने के लिए है!

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जिसके प्रति आप मालिकीपना रखोगे, वह सब सामने होगा। आखिर में, मरते समय भी जिस पर स्वामित्व रखा है, वह सारा दुःखदाई हो जाएगा!

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जब तक स्वार्थ रहता है, तब तक एकजुटता नहीं हो पाती। परमार्थ हो तभी एकात्मकता हो सकती है।

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जिनकी मृत्यु है, वे सभी संसारी!

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जब दृष्टि सीधी हो जाए तब खुद के ही दोष दिखते हैं, और अगर दृष्टि उल्टी हो तब सामनेवाले के दोष दिखते हैं।

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सिर्फ अहंकार करके घूमता रहता है और अंत में तो चिता में जाता है, ऐसी दयाजनक स्थिति है! और यदि बहुत अच्छा इंसान हो तो, उसे चंदन की लकडि़याँ मिलेंगी। लेकिन लकड़ी ही न?! जो मरे ही नहीं, वही सच्चा शूरवीर है।

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सब से बड़ी कमज़ोरी कौन सी है? ‘इगोइज़म’। चाहे कितने भी गुणवान हो, किन्तु ‘इगोइज़म’ हो तो ‘यूज़लेस’ (व्यर्थ)। गुणवान तो अगर नम्रतावाला हो तभी काम का है।

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व्यवहार चरित्र यानी किसी भी स्त्री को दुःख न हो इस तरह व्यवहार करना, किसी स्त्री की ओर दृष्टि न बिगड़े।

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आप यदि सही हो तो दुनिया में कोई आपका नाम देनेवाला नहीं है। यदि आप जगत् में किसी को दुःख नहीं देते हो, किसी को दुःख देने की आपकी भावना नहीं है, तो आपको कोई दुःख दे सके ऐसा नहीं है।

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