वीतरागों के ‘साइन्स’ की यह बहुत बड़ी खोज है! कैसा गूढ़ार्थ! अत्यंत गुह्य! यह ‘रियल’ और यह ‘रिलेटिव’, दोनों में भेद डालना, वह ‘ज्ञानी पुरुष’ के अलावा अन्य किसी का काम ही नहीं है न!
परम पूज्य दादा भगवानअंतिम समय आने पर कहेगा, ‘अब ज्ञानी आएँ और मुझे दर्शन हो जाएँ, दो घंटे का आयुष्य बढ़ा देना मेरा, हे भगवान!’ ऐसे याचना करता है। अब याचना मत कर। अब क्यों गिड़गिड़ा रहा है? जब सत्ता थी तब इस्तेमाल नहीं की। अब सत्ता नहीं है तो माँग रहा है!
परम पूज्य दादा भगवानजगत क्रोधी के बजाय क्रोध नहीं करनेवाले से ज़्यादा घबराता है! क्यों? कुदरत का नियम ऐसा है कि क्रोध बंद होने पर प्रताप उत्पन्न होता है! वर्ना क्रोध नहीं करनेवाले का रक्षण करनेवाला ही नहीं मिलता न! अज्ञानता में क्रोध रक्षण करता है!
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