आध्यात्मिक कोटेशन

जड़ में कभी भी ‘चेतन’ नहीं होता और चेतन में कभी भी जड़ नहीं होता। सिर्फ यह शरीर ही ‘मिश्र चेतन’ है। चेतन जैसा काम करता है, लेकिन वास्तव में चेतन नहीं है! वस्तुत्व का भान भेदविज्ञान से होता है। जड़ और चेतन में भेद डल जाता है।

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एब्सल्यूट यानी सांसारिक विचार आने ही बंद हो चुके हों। ‘खुद’ खुद के ही परिणामों को भजता है!

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आत्मा का अस्तित्व है, थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी, आत्मा का वस्तुत्व है, थ्योरी ऑफ रियलिटी और आत्मा का पूर्णत्व है, थ्योरी ऑफ एब्सल्यूटिज़म। ‘हम’ ‘थ्योरम ऑफ एब्सल्यूटिज़म’ में हैं!

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सांसारिक विचार घुस गए हैं। उन्हें वापस निकाल दिया जाए तो केवलज्ञान! जितना लिया है, उतना वापस दे दिया तो केवलज्ञान! केवलज्ञान अर्थात् क्या? जितना लिया, उतना दे देना! इतनी सी बात है!

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कोई भी क्रिया होने पर उसका पृथक्करण किया जाए कि चित्त का भाग इतना है, अहंकार का भाग इतना है, इन्द्रियों का भाग इतना है, ज्ञानेन्द्रियों का भाग इतना है, तो आत्मा ने क्या किया? आत्मा तो ‘वीतराग’ ही है। उसने तो ‘देखा व जाना!’ सभी भागों को अलग करने के बाद अंतत: सिर्फ ‘केवलज्ञान’ ही रहेगा! केवलज्ञान का वह भाग, वही आत्मा का है!

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आत्मा तो ‘ज्ञान स्वरूपी’ है, ‘केवलज्ञान स्वरूपी’ है, अन्य कुछ भी नहीं!

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भगवान ने कहा है कि, ‘आत्मज्ञान समझो।’ ‘आत्मज्ञान’ और ‘केवलज्ञान’ में बहुत ज़्यादा अंतर है ही नहीं। यदि ‘आत्मज्ञान’ को समझ लिया तो वह ‘कारण केवलज्ञान’ है और ‘केवलज्ञान’, ‘कार्य केवलज्ञान’ है!

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जिसे ज़रा भी वेदना होती है, वह ‘अपना’ भाग नहीं है। ‘अपने’ भाग में वेदना नाम का गुण ही नहीं है।

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लेपायमान भावों से निर्लेप रहना ही मोक्ष है!

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‘ज्ञान’ का स्वभाव ही ऐसा है कि (उस पर) किसी का असर ही नहीं होता, निर्लेप रहता है! ज्ञान, अज्ञान से भी निर्लेप रहता है। ज्ञान तो क्रिया में भी एकाकार नहीं होता, निर्लेप ही रहता है!

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आत्मा अरूपी है और रूपी भी है। सिर्फ रूपी कहोगे तो गलत होगा। देह की अपेक्षा रूपी है और वास्तव में अरूपी है। यदि एक का आग्रह रखा तो गलत कहा जाएगा। ‘ज्ञान’ हो जाने के बाद तो अरूपी है।

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आत्मा अरूपी है। इन आँखों से जो दिखाई देता है, वह सब तो भ्रांति है। यथार्थ तो ‘दिव्यचक्षु’ से दिखाई देता है कि, ‘ये भगवान हैं और ये भगवान नहीं हैं।’ दोनों भाग अलग दिखाई देते हैं। भगवान अमूर्त हैं। अत: आँखों से, रूपी चीज़ों द्वारा वे नहीं देखे जा सकते। भगवान, अरूपी ज्ञान से समझे जा सकते हैं, चारित्र से पहचाने जाते हैं।

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