‘आत्मा ऐसा है, वैसा है, ऐसा नहीं है’, ऐसा तो सब शास्त्र भी कहते हैं, साधु-महाराज भी कहते हैं। लेकिन मीठा का मतलब क्या है? वह ज्ञान तो सिर्फ ‘ज्ञानी’ ही चखाते हैं। उसके बाद वह ज्ञान क्रियाकारी हो जाता है।
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