आध्यात्मिक कोटेशन "justice" पर

इस जगत् के न्यायाधीश तो जगह-जगह बैठे होते हैं। लेकिन कर्म के न्यायाधीश तो एक ही हैं। ‘भुगते उसकी भूल’! यही एक ऐसा न्याय है, जिससे पूरा जगत् चल रहा है और भ्रांति के न्याय से पूरा ही संसार खड़ा है!

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जगत् का न्याय सापेक्ष है जो दोनों पक्षों के आमने-सामने होने पर ही हो सकता है। निरपेक्ष न्याय ही वास्तविक न्याय है।

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यह कुदरत एक क्षण के लिए भी न्याय से बाहर नहीं गई है। कुदरत यदि एक क्षण के लिए भी न्याय से बाहर चली जाए तो वह कुदरत नहीं है।

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जगत् न्याय स्वरूप है, तभी परमात्मा हैं!

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