वचनबल कैसे प्राप्त होता है? एक भी शब्द का उपयोग मज़ाक के लिए नहीं किया हो, एक भी शब्द का उपयोग झूठे स्वार्थ या किसी से कुछ ऐंठने के लिए नहीं हुआ हो, वाणी का दुरुपयोग नहीं किया हो, खुद का मान बढ़ाने के हेतु से वाणी का उपयोग नहीं किया हो, तब वचनबल सिद्ध होता है!
परम पूज्य दादा भगवानजब तक स्वार्थ रहता है, तब तक एकजुटता नहीं हो पाती। परमार्थ हो तभी एकात्मकता हो सकती है।
परम पूज्य दादा भगवानस्वार्थ से करे तब पाप कर्म बंधते हैं और निःस्वार्थता से करे तब पुण्य कर्म बंधते हैं। लेकिन दोनों ही कर्म हैं न? पुण्य कर्म का फल है सोने की बेड़ी और पाप कर्म का फल है लोहे की बेड़ी। लेकिन दोनों बेडि़याँ ही हैं न?
परम पूज्य दादा भगवानसंसार स्वार्थ का सगा है। सभी ‘रिलेटिव’ सगाइयाँ हैं। सिर्फ ‘ज्ञानीपुरूष’ की ही एक ‘रियल’ सगाई है। वे आपके प्रति अत्यंत करुणावाले होते हैं। वे खुद आत्म स्वरूप हुए हैं इसलिए आप का हल ला देते हैं!
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