प्रत्येक काम का हेतु रहता है। यदि सेवा का हेतु होगा तो ‘बाय प्रोडक्ट’ में लक्ष्मी मिलेगी ही। हमें जिस विद्या की जानकारी है, उसका सेवा में उपयोग करना, वही हमारा हेतु होना चाहिए।
परम पूज्य दादा भगवानअगर कोई सेवा कर रहा है तो वह प्राकृतिक स्वभाव है और अगर कुसेवा कर रहा है तो वह भी प्राकृतिक स्वभाव है। वहाँ पर किसी का ‘खुद’ का पुरुषार्थ नहीं है। लेकिन मन से ऐसा मानता है कि ‘मैं कर रहा हूँ’। वही भ्रांति है!
परम पूज्य दादा भगवानपूरी ज़िंदगी भतीजे से सेवा करवाई और मरते समय पूरी जायदाद बेटे को दे दी! वह है बुद्धि का आशय!
परम पूज्य दादा भगवानभगवान कहते हैं कि मन-वचन-काया और आत्मा (प्रतिष्ठित आत्मा) का उपयोग औरों के लिए कर। फिर तुझ पर कोई भी दु:ख आए तो मुझे बताना।
परम पूज्य दादा भगवानआप खुद के लिए कुछ भी मत करना। लोगों के लिए ही करना, तो आपको खुद के लिए कुछ करना ही नहीं पड़ेगा।
परम पूज्य दादा भगवानsubscribe your email for our latest news and events