सामनेवाले की भूल निकालने से, सामनेवाले से लाभ उठाने की वृत्ति से संसार स्पर्श करता है!
परम पूज्य दादा भगवानवृत्तियों को जितना भटकना हो, उतना भटकें लेकिन वे भी स्वतंत्र नहीं हैं। आखिरकार वे भी परतंत्र हैं। अंत में ‘यहाँ’ आत्मा की ओर वापस मुड़ना ही होगा!
परम पूज्य दादा भगवानजिसमें वृत्तियाँ जकड़ी रहें, उसे कहते हैं भोग। जिसमें वृत्तियाँ जकड़ी हुई न रहें, वह उदासीनता।
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