
व्यवहार चरित्र यानी किसी भी स्त्री को दुःख न हो इस तरह व्यवहार करना, किसी स्त्री की ओर दृष्टि न बिगड़े।
परम पूज्य दादा भगवानजगत् आसक्ति को प्रेम मानकर परेशान होता है। पत्नी को पति से काम और पति को पत्नी से काम! यह सब काम से खड़ा हुआ है! काम न हो तब भीतर से सब शोर मचाते हैं, धावा बोलते हैं! संसार में एक मिनट के लिए भी कोई अपना नहीं बना है। सिर्फ ‘ज्ञानीपुरूष’ ही अपने हैं। इसलिए भगवान ने कहा है, ‘जीवमात्र अनाथ है।’
परम पूज्य दादा भगवानइस जगत् का न्याय कैसा है? कि जिन्हें लक्ष्मी से संबंधित विचार नहीं आते, विषय से संबंधित विचार नहीं आते, जो देह से निरंतर जुदा ही रहता है, उन्हें भगवान कहे बगैर नहीं रहता।
परम पूज्य दादा भगवानमोक्षमार्ग ऐसा कभी भी नहीं हो सकता कि जहाँ दिल को ठंडक न हो। दिल को ठंडक हो जानी चाहिए। दिल को ठंडक नहीं हुई है, इसीलिए तो जीव का स्वभाव कषायी है। वर्ना उसे कषाय और विषय की ज़रूरत ही नहीं है।
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