किसी के घर गए हों और हमें उसकी पत्नी अच्छा-अच्छा भोजन करवाए तो उसका उपकार मानना चाहिए, लेकिन ऐसी भावना नहीं करनी चाहिए कि यह स्त्री मेरे साथ आए तो अच्छा। खाने-पीने की चीज़ों के साथ ऐसे भाव कर लेते हैं इसलिए ऐसी बलाएँ लिपट जाती हैं। इसलिए भगवान ने कहा है कि, ‘मौज करना लेकिन मौजी मत बनना, शौक रखना मगर शौकीन मत बनना।’
परम पूज्य दादा भगवानपरम उपकारी पर किंचित्मात्र भी राग नहीं और परम उपसर्ग करनेवाले पर किंचित्मात्र भी द्वेष नहीं, ऐसे वीतराग चारित्र को जानना है।
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