सिर्फ अहंकार करके घूमता रहता है और अंत में तो चिता में जाता है, ऐसी दयाजनक स्थिति है! और यदि बहुत अच्छा इंसान हो तो, उसे चंदन की लकडि़याँ मिलेंगी। लेकिन लकड़ी ही न?! जो मरे ही नहीं, वही सच्चा शूरवीर है।
परम पूज्य दादा भगवानसब से बड़ी कमज़ोरी कौन सी है? ‘इगोइज़म’। चाहे कितने भी गुणवान हो, किन्तु ‘इगोइज़म’ हो तो ‘यूज़लेस’ (व्यर्थ)। गुणवान तो अगर नम्रतावाला हो तभी काम का है।
परम पूज्य दादा भगवानदो वस्तुओं के आधार पर इस जगत् के मनुष्य जीते हैं: एक स्वरूप का आधार और दूसरा अहंकार का आधार।
परम पूज्य दादा भगवानसर्व दुःखों से मुक्ति हो जाए, उसका नाम यथार्थ धर्म। अहंकार जाए, ‘रोंग बिलीफें’ जाएँ, वह यथार्थ धर्म है। यथार्थ धर्म रोंग बिलीफों सहित नहीं होता।
परम पूज्य दादा भगवानस्यादवाद वाणी की भूमिका कब उत्पन्न होती है? तब, जब अहंकार शून्य हो जाता है, पूरा जगत् निर्दोष दिखाई देता है, किसी जीव का किंचित्मात्र भी दोष नहीं दिखाई देता है, किंचित्मात्र भी किसी धर्म का प्रमाण आहत नहीं होता।
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