अंतिम समय आने पर कहेगा, ‘अब ज्ञानी आएँ और मुझे दर्शन हो जाएँ, दो घंटे का आयुष्य बढ़ा देना मेरा, हे भगवान!’ ऐसे याचना करता है। अब याचना मत कर। अब क्यों गिड़गिड़ा रहा है? जब सत्ता थी तब इस्तेमाल नहीं की। अब सत्ता नहीं है तो माँग रहा है!
परम पूज्य दादा भगवानजगत क्रोधी के बजाय क्रोध नहीं करनेवाले से ज़्यादा घबराता है! क्यों? कुदरत का नियम ऐसा है कि क्रोध बंद होने पर प्रताप उत्पन्न होता है! वर्ना क्रोध नहीं करनेवाले का रक्षण करनेवाला ही नहीं मिलता न! अज्ञानता में क्रोध रक्षण करता है!
परम पूज्य दादा भगवानसमकित यानी सुल्टी दृष्टि। उल्टी दृष्टि तो क्या करेगी? ‘इसने मेरा नुकसान किया, इसने मेरा फायदा करवाया, इसने मेरा अपमान किया, मुझे दुःख दिया, इसने सुख दिया’ कहेगी। दुःख देनेवाला या सुख देनेवाला कोई है ही नहीं बाहर! सब अंदर ही है।
परम पूज्य दादा भगवानमाया यानी घोर अज्ञानता। अज्ञानता के कारण ये दुःख हैं। इस दुनिया में दुःख है ही नहीं। यदि दुःख होता तो सभी को होना चाहिए।
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