आध्यात्मिक कोटेशन

एक मच्छर भी आपको छू नहीं सके जगत् ऐसा न्यायवाला है, यदि आप द़खल नहीं करो तो। आपकी द़खलंदाज़ी बंद हो जाएगी तो सबकुछ बंद हो जाएगा।

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भीतर आत्मा बैठा है। उस पर यदि श्रद्धा हो तो इस जगत् में हर चीज़ आपके पास आए ऐसा है।

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दो वस्तुओं के आधार पर इस जगत् के मनुष्य जीते हैं: एक स्वरूप का आधार और दूसरा अहंकार का आधार।

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अहंकार खत्म हुआ, उसी का नाम परमात्मा! अहंकार ही माया है।

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भगवान ने कहा, ‘क्या करने से मोक्ष में जाया जा सकता है?’ समकित हो जाए तब जाया जा सकता है अथवा ‘ज्ञानी पुरुष’ की कृपा हो जाए, तो।

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एक ही अकषायी मनुष्य के दर्शन किए जाएँ तो यों ही पाप धुल जाएँ। ‘ज्ञानी पुरुष’ के अलावा और कोई मनुष्य अकषायी नहीं होता।

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जीवन के ध्येय दो प्रकार से तय होते हैं। यदि हमें ज्ञानी पुरुष नहीं मिलें तो हमें संसार में इस प्रकार जीना चाहिए कि हम किसी के लिए दुःखदायी नहीं बनें। हमसे किसी को किंचित्‌मात्र भी दुःख नहीं हो, यही सबसे बड़ा ध्येय होना चाहिए और बाकी तो प्रत्यक्ष ‘ज्ञानी पुरुष’ मिल जाएँ तो उनके सत्संग में ही रहें, उससे तो आपके हरएक काम हो जाएँगे, सभी पज़ल सॉल्व हो जाएँगे।

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यदि ‘ज्ञानी पुरुष’ का सिर्फ एक ही अक्षर समझ में आ जाए तो कल्याण हो जाए!

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सर्व दुःखों से मुक्ति हो जाए, उसका नाम यथार्थ धर्म। अहंकार जाए, ‘रोंग बिलीफें’ जाएँ, वह यथार्थ धर्म है। यथार्थ धर्म रोंग बिलीफों सहित नहीं होता।

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जो अपने अंडरहैन्ड को कभी नहीं डाँटता, वर्ल्ड में उसका कोई बॉस नहीं होता।

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अगर आप कहो कि, ‘मैं अब वृद्ध दिखने लगा हूँ’, तो वैसे ही दिखने की शुरूआत हो जाती है। आप कहो कि, ‘नहीं, अब मैं युवक जैसा दिखता हूँ’, तो वैसा दिखने की शुरूआत हो जाती है। जैसी कल्पना करेंगे वैसा दिखाई देगा। आत्मा कल्पस्वरूप है और विकल्प करें तो फिर संसार खड़ा हो जाता है। निर्विकल्प में आ जाएँ तो ‘मूल स्वरूप’ में आ सकते हैं।

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भीतर अनंत शक्ति है। आप सोचते हो, तो जैसा भीतर सोचते हो वैसा ही बाहर हो। लेकिन यह तो मेहनत करके विचारों के पीछे पड़ते हैं फिर भी बाहर वैसा होता नहीं है, इतना भारी दिवाला निकाला है मनुष्यों ने! कलियुग आ गया है!

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