आत्मा की शक्ति व्यक्त होने के बाद, फिर बाहर की कोई झंझट नहीं करनी होती। अंदर सिर्फ विचार ही आता है और बाहर अपने आप उस अनुसार हो जाता है। ‘व्यवस्थित’ सब कर देता है। आत्मा का वैभव किसी राजा से भी बहुत ज़्यादा है! यह तो भगवान पद है!
परम पूज्य दादा भगवानजड़ में कभी भी ‘चेतन’ नहीं होता और चेतन में कभी भी जड़ नहीं होता। सिर्फ यह शरीर ही ‘मिश्र चेतन’ है। चेतन जैसा काम करता है, लेकिन वास्तव में चेतन नहीं है! वस्तुत्व का भान भेदविज्ञान से होता है। जड़ और चेतन में भेद डल जाता है।
परम पूज्य दादा भगवानएब्सल्यूट यानी सांसारिक विचार आने ही बंद हो चुके हों। ‘खुद’ खुद के ही परिणामों को भजता है!
परम पूज्य दादा भगवानआत्मा का अस्तित्व है, थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी, आत्मा का वस्तुत्व है, थ्योरी ऑफ रियलिटी और आत्मा का पूर्णत्व है, थ्योरी ऑफ एब्सल्यूटिज़म। ‘हम’ ‘थ्योरम ऑफ एब्सल्यूटिज़म’ में हैं!
परम पूज्य दादा भगवानसांसारिक विचार घुस गए हैं। उन्हें वापस निकाल दिया जाए तो केवलज्ञान! जितना लिया है, उतना वापस दे दिया तो केवलज्ञान! केवलज्ञान अर्थात् क्या? जितना लिया, उतना दे देना! इतनी सी बात है!
परम पूज्य दादा भगवानकोई भी क्रिया होने पर उसका पृथक्करण किया जाए कि चित्त का भाग इतना है, अहंकार का भाग इतना है, इन्द्रियों का भाग इतना है, ज्ञानेन्द्रियों का भाग इतना है, तो आत्मा ने क्या किया? आत्मा तो ‘वीतराग’ ही है। उसने तो ‘देखा व जाना!’ सभी भागों को अलग करने के बाद अंतत: सिर्फ ‘केवलज्ञान’ ही रहेगा! केवलज्ञान का वह भाग, वही आत्मा का है!
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