अध्यात्म और धर्म एक नहीं हैं। दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर है।
तो आइए जानते हैं, अध्यात्म और धर्म में क्या अंतर है!
शांति और सुख की खोज व्यक्ति धर्म से करता है।
प्रत्येक धर्म अपने मार्ग अनुसार ज्ञान प्रदान करता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। धर्म एक श्रद्धा और मान्यता है। यह हमें बुरी चीजों को छोड़कर अच्छी चीजों को अपनाना सिखाता है, क्योंकि कुदरत का नियम ऐसा है कि जब कोई बुरे कर्म करता है, उसका पाप कर्म बाँधते है, जो उसे दु:खी करता है; अगर कोई अच्छे कर्म करता है, तो वह पुण्य कर्म का बाँधते है जिससे उसे खुशी देता है।
दुनिया में बहुत सारे धर्मो का पालन किया जाता है जैसे की हिन्दू धर्म , मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म इत्यादि। अपने आध्यात्मिक विकास के आधार पर, सभी अपने अनुकूल योग्य धर्म ढून्ढ लेते है - जो उसे सही लगता है की उनके व्यू पोइन्ट से मिलता है जिसे वह सही मानकर स्वीकार करता है और इस तरह वह उस धर्म से जुड़ जाता है।
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- धर्म कुछ करने के बारे में है - आपको भगवान की पूजा करनी है, आपको भगवान के नाम का जप करना होगा आपको अनुष्ठान करना होगा, आपको प्रार्थनाएं बोलनी रहती है, आपको पश्चाताप करना होगा, आपको ध्यान करना होगा, आपको पत्नी और बच्चो का , घर और संपत्ति, पैसा और सभी सामान को त्यागना होगा और आपको बहुत सारी तपस्या भी करनी होगी। मुख्य रूप से, हमेशा किसी भी कार्य से जुड़े रहने से (कर्ता होने से ) बहुत बोझ और तनाव होता है।
- जब कोई व्यक्ति कुछ करना चाहता है और किसी भी कारण से उसे करने में विफल हो जाता है तब स्वाभाविक रूप से उसके भीतर तुरंत ही बहुत डर और घबराहट हो जाती है, जो उसे बहुत बेचैन करती है।
- अच्छे कर्म करने से निस्संदेह पुण्य कर्म बंधते है। लेकिन इन पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए पुनर्जन्म लेना होगा और फिर से इस दुनिया में आना होगा। जन्म और मृत्यु की प्रक्रिया बहुत दर्दनाक है और अपने पुण्य कर्मों के फल का आनंद लेने के लिए जीव को दुःख से गुजरना ही पड़ता है।
- इसके अलावा, पुण्य कर्मों का फल आम तौर पर सांसारिक सुख के रूप में होता है, जो अपने स्वभाव से टेम्परेरी होता है। जब उस सुख का समय समाप्त हो जाता है तो टेम्परेरी सुख अपार दु:ख देता है।
- और जब तक कोई इस सुख का अनुभव कर रहा है, तब वह थोड़ी देर के लिए संतुष्टि का अनुभव करता है लेकिन उसके के बाद वह संतृप्त हो जाता है और सुख के कुछ अन्य स्रोत खोजने के लिए आगे बढ़ता है। यह प्रक्रिया जन्म जनमतर चलती रहती है।