हाँ, भाग्य है; वह सच में है! भाग्य कैसे सच है यह जानने के लिए, आइए वास्तविक जीवन के कुछ उदाहरण देखते हैं, शुरुआत आपके 'खुद' के जीवन से करते हैं।

भाग्य के वास्तविक जीवन के उदाहरणों का विश्लेषण

आपने कभी कल्पना न की हो या सोचा भी न हो ऐसी प्रतिकूल या मुश्किल, अनपेक्षित परिस्थितियों का अनुभव किया होगा। कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ आपको बहुत निराशा और लाचारी महसूस करवाती हैं, जिसके कारण आपको समाधान ढूँढने में मुश्किल रही होगी। ऐसे वक़्त आपने बार-बार भगवान से पूछा भी होगा, "मैं ही क्यों? मैंने तो किसी के साथ कुछ भी गलत नहीं किया। फिर, मुझे ऐसे कठिन और बुरे समय का सामना क्यों करना पड़ रहा है?" नहीं पूछा?

आइए अब भगवान श्रीराम का उदाहरण लेते हैं। ज्योतिषियों द्वारा की गई भविष्यवाणी के अनुसार वे अयोध्या के राजा बनने वाले थे। हालाँकि, उनकी शादी के बाद तुरंत ही, उन्हें चौदह साल का वनवास हुआ। इसका तो भगवान श्रीराम को अंदाज़ा भी नहीं था और ना ही उन्होंने इसकी कभी कल्पना की होगी।

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दूसरा उदाहरण ईसा मसीह का है। वह लोगों को कष्टों और कठिनाइयों से बचाने के नेक मार्ग पर थे। हालाँकि, उसके बावजू़द भी उन्हें अपमानजनक रूप से क्रूस पर चढ़ाया गया था, जिसकी कल्पना ना तो वह और ना ही उनके अनुयायी कर सके थे।

तो, वास्तविक जीवन के इन उदाहरणों में क्या समानता है? जो हुआ, क्या वह जो सोचा गया था या जो अपेक्षित था उससे अलग था। तो अब सवाल यह उठता है कि ऐसा क्यों है? जिसका उत्तर है नियति। नियति वास्तव में क्या है और यह कैसे अस्तित्व में है यह जानने के लिए आइए जानते हैं कि नियति क्या है या नियति कैसे उदय में आती है।

भाग्य क्या है? भाग्य कब साकार होता है?

अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान के अनुसार, “पिछले जन्म में जो कर्म किए थे, वे योजना के रूप में थे। यानी कि कागज़ पर लिखी हुई योजना। अब वे अभी रूपक में आते हैं। जब फल देने के लिए सम्मुख होते हैं, तब वे प्रारब्ध कहलाते हैं। कितने काल में परिपक्व होते हैं? वे पचास, पचहत्तर या सौ सालों में परिपक्व होते हैं, तो फल देने के लिए सम्मुख होते हैं। पिछले जन्म में जो कर्म बाँधे थे, वे कितने ही सालों में परिपक्व होते हैं, तब यहाँ फल देते हैं और जब वे फल देते हैं, उस समय जगत् के लोग क्या कहते हैं, कि इसने कर्म बाँधा।"

वह आगे बताते हैं,“जगत् के लोगों को क्या लगता है? हं... देख, बहुत खाता था होटल में और इसीलिए मरोड़ हो गए। ‘होटल में खाता था, वह कर्म बाँधा, उससे ये मरोड़ हो गए’ कहेंगे। जबकि ज्ञानी क्या कहते हैं, वह होटल में किसलिए खाता था? ऐसा किसने सिखाया उसे, होटल में खाना? किस तरह हुआ? संयोग खड़े हो गए। पहले जो योजना की हुई थी, उस योजना का परिणाम आया, इसलिए वह होटल में गया। उसे जाने के संयोग सारे मिल आते हैं। इसलिए अब छूटना हो तो छूटा नहीं जा सकता। उसके मन में ऐसा होता है कि अरे ऐसा क्यों हो रहा है? तब यहाँ के भ्रांतिवाले को ऐसा लगता है कि यह काम किया इसलिए ऐसा हुआ। भ्रांतिवाले ऐसा समझते हैं कि यहाँ कर्म बाँधते हैं और यहीं भोगते हैं। ऐसा समझते हैं। लेकिन यह पता नहीं लगाते कि खुद को नहीं जाना हो, फिर भी कैसे जाता है? उसे नहीं जाना है फिर भी वह किस प्रकार, किस नियम से जाता है, वह हिसाब है।"

अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञानी के द्वारा कर्मफल के क्रम पर हुए वास्तविक सत्संग का अंश नीचे दिया गया है।

प्रश्नकर्ता : कौन से ऑर्डर (क्रम) में कर्मों का फल आता है? जिस ऑर्डर में बँधता है उसी ऑर्डर में उनका फल आता है? अर्थात् पहले यह कर्म बाँधा, फिर यह कर्म बाँधा, फिर यह कर्म बाँधा। यह कर्म एक नंबर पर बाँधा, तो उसका डिस्चार्ज भी फिर, पहले आता है? फिर दो नंबर का बाँधा, उसका डिस्चार्ज दूसरे नंबर पर आता है, ऐसा है?

दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है।

प्रश्नकर्ता : हं, तो कैसा है, वह ज़रा समझाइए।

दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। वे सभी अपने-अपने स्वभाव के अनुसार सेट हो जाते हैं कि ये दिन में भुगतने के कर्म, ये रात में भुगतने के कर्म, ये सभी... इस तरह सेट हो जाते हैं। ये दु:ख में भुगतने के कर्म, ये सुख में भुगतने के कर्म, ऐसे सेट हो जाते हैं। वैसी सारी व्यवस्था हो जाती है उनकी।

प्रश्नकर्ता : वह व्यवस्था किस आधार पर होती है?

दादाश्री : स्वभाव के आधार पर। हम सब मिलते हैं, तो सभी मिलते-जुलते स्वभाववाले हों, तभी मिल पाते हैं। वर्ना नहीं होता।

भाग्य को नियंत्रित कौन करता है?

नहीं, इस ब्रह्मांड में ऐसा कोई नहीं है जो नियति को उदय में ला सके या हमारे कर्मों का फल दे। कर्म का नियम ऐसा है कि हमारे कर्मों का परिणाम कुदरती और अपने आप आता है। तो, अब सवाल यह उठता है कि, "कर्म का नियम किसने बनाया?"

खैर, किसी ने नहीं! जब 2H और O मिलते हैं, तो अपने आप पानी बन जाता है; बीच में कोई कर्ता नहीं है; परम पूज्य दादा भगवान के अनुसार यही कर्म का नियम है। वह आगे बताते हैं कि कोई भी कर्म के नियम नहीं बनाता; वह विज्ञान के नियमों पर आधारित है।

भाग्य कैसे फल देता है?

जब कोई घटना घटित होती है तब नियति अनेक कारणों में सिर्फ एक ही कारण होता है। ऐसे और भी कारण हैं जो भूमिका निभाते हैं, जैसे काल, क्षेत्र और पुरुषार्थ।

इनमें से पुरुषार्थ हमारे हाथ में है। आपको अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देना चाहिए, और फिर जो कुछ भी होता है, उसे नियति कहा जाता है। इसका कारण यह है कि नियति को पहले से ही नही जाना जा सकता। इसका सीधा अर्थ यह है कि कोई घटना किसी समय अवश्य घटेगी। लेकिन, घटना और समय दोनो ही अनजान हैं, उनका पहले से अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता।

परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, "‘निश्चित है’ ऐसा एक तरफा नहीं बोल सकते। ‘अनिश्चित’ है ऐसा भी नहीं बोल सकते। जोखिमदारी है, गुनाह लगेगा। निश्चित-अनिश्चित के बीच में हैं यह। हर प्रकार से सावधानी रखने के बावजूद भी यदि जेब कट जाए और समझे कि ‘नियति है’, वह यथार्थ है।

मेरे भाग्य के लिए कौन ज़िम्मेदार है?

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केवल आप ही हैं! कोई और नहीं है! किसी का जीवन उसके पिछले जीवन के कर्मों के परिणाम के अलावा और कुछ भी नही है। इसमें हमारे विचारों से लेकर क्रियाओं तक सब कुछ शामिल होता है। कर्म भाव से बंधते हैं, क्रियाओं से नहीं। इसलिए, आपके भाव ही आपकी नियति का कारण बन जाते हैं, जो आपके लिए और कोई नहीं कर सकता। इस तरह आप भाग्य चुनते हैं। तो हाँ, भाग्य सच में होता है!

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