हाँ, भाग्य बदला जा सकता है लेकिन उसके लिए विशेष प्रयास की आवश्यकता है! हमारा भाग्य क्या है, यह हमें कभी भी पूरी तरह से या सटीक रूप से नहीं पता चल सकता लेकिन हम इतना ज़रूर जान सकते हैं कि यह फलीभूत कैसे होता है। इसका फल बहुत सारे कारणों के इकट्ठा होने पर निर्भर करता है, जिसमें आपका प्रयास भी शामिल है। अपना भाग्य कैसे बदल सकते हैं यह जानने के लिए भाग्य कैसे उदय में आता है यह विस्तार से समझते हैं।
बहुत लोग ऐसा सोचते हैं कि अगर जीवन पूर्वनिर्धारित है तो जीवन में हमारी भूमिका क्या है या हमें प्रयास क्यों करना चाहिए? आख़िरकार जो होना है वह तो होकर ही रहेगा! वास्तव में, भाग्य सिर्फ विशेष परिणाम या घटना को जन्म देनेवाले कारणों में से सिर्फ़ एक कारण है; इसके अलावा बहुत से और भी कारण हैं जैसे कि काल, क्षेत्र, प्रकृति और यहाँ तक कि हमारा प्रयास भी।
यह सच है कि कोई भी इस जीवन में उदय में आनेवाली नियति को नहीं बदल सकता। हालाँकि, दो खास चाबियाँ हैं जिनकी मदद से यह संभव हो सकता है। इन चाबियों के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें और साथ में यह भी समझें कि नियति उदय में आए तब हमारी भूमिका क्या है!
कारणों की परस्पर क्रिया को समझने के लिए एक प्रयोग
उद्देश्य: व्यक्ति के प्रयास की आवश्यकता को पहचानना
सामग्री/आवश्यकताएँ: आपके हाथ में आपका प्रिय कलात्मक मिट्टी का खाली मग
धारणा: नाज़ुक मग अचानक आपके हाथ से फिसल जाता है।
प्रक्रिया: अब, आप या तो इंतज़ार कर सकते हैं और देख सकते हैं कि कैसे मग आपके हाथ से गिर रहा है या आप उसे बचाने का प्रयास करके उसे गिरने और टूटने से बचा सकते हैं। एक समझदार व्यक्ति होने के नाते, आप मग को बचाने की कोशिश करेंगे, है ना? फिसलते हुए मग को गिरने से बचाने की क्रिया आपकी ओर से किया गया प्रयास है। खड़े रहकर देखने और इंतज़ार करने की क्रिया संभव नहीं है, क्योंकि कोई भी इंसान ऐसा नहीं करेगा, ख़ासकर जब मग प्रिय हो!
परिणाम: अब, आपके इस प्रयास के बावजूद, परिणाम (मग की नियति) अभी भी अनजान है। या तो मग गिरकर टूट सकता है या आप उसे गिरने और टुकड़ों में बँटने से सफलतापूर्वक बचा सकते हैं। इसलिए, परिणाम पॉज़िटिव या तो नेगेटिव हो सकता है।
निष्कर्ष: इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि जब तक मग किसी टेबल या फर्श जैसी सतह साथ से टकराता नहीं, तब तक आप उसे बचा सकते हैं। आप परिणाम (उस मग की नियति) की परवाह किए बिना उसे बचाने का प्रयास करते हैं। हमें हमेशा पॉज़िटिव परिणाम आएगा यह मानकर प्रयास करना चाहिए।
वास्तविक जीवन में प्रयोग: यही स्थिति मानव जीवन की भी है। जो होना है वह ज़रूर होकर रहेगा लेकिन क्योंकि हमें पता नहीं है कि क्या होने वाला है, हमें अंत तक प्रयास करना है। याद रखें, जो होने वाला है उसे आकार देने में आप भी एक निमित्त हैं।
सब कुछ पूर्वनिर्धारित है यह बहाना देकर अपनी भूमिका न निभाना और खाली बैठे रहना मूर्खता है।
वास्तविक जीवन के उदाहरण
- क्या होता यदि आल्बर्ट आइन्स्टाइन ने सापेक्षता के सिद्धांत और E=mc2 समीकरण को खोजने का प्रयास नहीं किया होता?
- क्या होता यदि थॉमस एडिसन ने लाईट बल्ब की खोज के लिए प्रयास नहीं किया होता?
- यदि चार्ल्स बैबेज ने कंप्यूटर की खोज के लिए प्रयास नहीं किया होता तो क्या होता?
- क्या होता यदि आर्यभट्ट ने ‘शून्य’ की खोज के लिए प्रयास नहीं किया होता?
- क्या होता यदि महात्मा गांधीजी ने भारत को अंग्रेज़ों के चंगुल से आज़ाद कराने की कोशिश नहीं की होती?
- क्या होता यदि आध्यात्मिक गुरुओं ने यह उपदेश नहीं दिया होता कि शाश्वत सुख कैसे प्राप्त किया जाए?
- क्या होता यदि सभी महान लोगों ने सब कुछ भाग्य पर छोड़ दिया होता और इन अपूर्व उपलब्धियों को हासिल करने के लिए कुछ नहीं किया होता?
- इससे भी बढ़कर, क्या होता यदि हम यह सोचकर अपने जीवननिर्वाह के लिए पैसे नहीं कमाते कि वे तो अपने आप आ जाएँगे, क्योंकि पैसों का आना तो तय ही है?
इन सभी वास्तविक जीवन के उदाहरणों से यह समझा जा सकता है कि, प्रत्येक मनुष्य को प्रयास करना पड़ता है जिसके बिना कोई इच्छित फल प्राप्त नहीं होता। यह अनुभव इस जन्म की नियति बदलने की दिशा में पहला कदम है।
कर्मों के उदय के दौरान हमारी भूमिका
अब जब नियति पहले से तय होने के बावजूद हमें भूमिका निभानी है, तो जानते हैं कि हमारी भूमिकाएँ क्या-क्या हैं। जब पिछले जन्म के कर्मों का उदय हो रहा है तब हमें दो प्रकार की भूमिकाएँ निभानी होती हैं:
स्थूल भूमिकाएँ
- दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ लक्ष्य की ओर सकारात्मक होकर कार्य करना
- परिणाम को स्वीकार करना और अगर परिणाम अनुकूल न हो तो उसके अनुकूल होने तक सिन्सियरली फिर से प्रयास करना (यह समझना कि जो कुछ भी हुआ है वह पिछले जन्म में किए गए कर्मों का परिणाम है, लोग और परिस्थितियाँ केवल निमित्त मात्र हैं)
सूक्ष्म भूमिकाएँ
- अच्छा भाव रखना (जिससे अगले जीवन की नियति बेहतर हो)
- अनुकूल संजोगों के लिए प्रार्थना करना (जिससे उदय में आनेवाला भाग्य या उसके नेगेटिव असर बदल जाएँ)
- दृढ़ निश्चय रखना (जिससे भाग्य बदल जाए)
स्थूल भूमिकाओं के पॉज़िटिव असर
- किसी भी परिस्थिति का पॉज़िटिव अभिगम और दृढ़ मनोबल के साथ सामना करना
- कभी भी निराश नहीं होना या हार नहीं मानना या नकारात्मक अभिगम नहीं रखना (“मैं कर सकता हूँ!” ऐसा पॉज़िटिव अभिगम रखना)
- कुदरत आवश्यक अनुकूल परिस्थितियाँ जुटाने में तुरंत सहाय करती ही है (हालाँकि इसमें समय लग सकता है), क्योंकि जो पॉज़िटिव हैं और अपने लक्ष्य के प्रति सिन्सियर रहते हैं, उनकी कुदरत सहाय करती है
- संतोषपूर्ण जीवन जीना
- प्रतिबद्धता और आशावाद जैसे सद्गुण अपनाना
सूक्ष्म भूमिकाओं के पॉज़िटिव असर
आपकी सूक्ष्म भूमिका का एकमात्र लेकिन सबसे बड़ा पॉज़िटिव असर है: अनुकूल नियति! अच्छा भाव रखना, निःस्वार्थ भाव से लगातार प्रार्थना करना और अडिग दृढ़ निश्चय रखना, मनचाहे भाग्य के कारण हैं। यों तो यह तीनों भूमिकाएँ अनुकूल भविष्य की नियति बनाने में मदद करती हैं, लेकिन बाद की दो भूमिकाओं में उदय में आनेवाली नियति को बदलने की शक्ति है। इस जानकारी से हमने जीवन की नियति को बदलने का दूसरा पड़ाव पार किया है।
अच्छी भावना करने के दो तरीके
तरीका १
मनचाही क़िस्मत पाने का एक तरीका यह है कि हर सुबह पाँच बार बोलें, “प्राप्त मन-वचन-काया से किसी भी जीव को किंचित्मात्र भी दुःख न हो।“ यह भावना हमारे अगले जीवन को सुखी और शांतिपूर्ण बनाने का कारण बनती है।
कोई भी प्रयास व्यर्थ नहीं जाता। इसका परिणाम निश्चित रूप से मिलता है, क्योंकि कार्य में प्रयास का उद्देश्य पॉज़िटिव है। याद रखें कि यह भाव कारण है और नियति परिणाम है।
तरीका २
अक्रम विज्ञान के प्रणेता परम पूज्य दादा भगवान के अनुसार, यदि हमें किसी लक्ष्य को पूरा करने में नकारात्मक या अनचाहे परिणाम का सामना करना पड़े, तो हमें क्षमा मांगनी चाहिए (प्रतिक्रमण) और अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चय करना चाहिए।
नेगेटिव परिणाम इसलिए आता है क्योंकि आपने अपने ही पॉज़िटिव या मनचाहे परिणामों में नेगेटिविटी लाकर अंतराय डाले हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि आप डॉक्टर बनने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं (पॉज़िटिव प्रयास) लेकिन नहीं बन पा रहे हैं, तो इसका मतलब है कि आपने किसी और को डॉक्टर बनने से रोकने में निमित्त बनकर अंतराय डाले थे (शायद पिछले जन्म में)। साथ ही, यदि आप सफल न होने के लिए दूसरों को दोष देते रहेंगे, तो भी इसका परिणाम बुरा कर्म और परिणाम स्वरूप प्रतिकूल भाग्य होगा।
अब, यदि आप पिछली गलती के साथ साथ नेगेटिव परिणाम के लिए किसी को भी दोषित ठहराने के (उन्हें निश्चित रूप से दुःख होगा) दिल से प्रतिक्रमण करते हैं, तो आपके पिछले अंतराय कर्म और वर्तमान बुरे कर्म (दूसरों को दोषित देखना) नष्ट हो जाते हैं। प्रतिक्रमण तीन चरणों में मन में करने की सूक्ष्म प्रक्रिया है: पूर्व में किए गए गलत भाव या कार्य की गलती को स्वीकार करना, क्षमा मांगना और उसे दोबारा न दोहराने का संकल्प (दृढ़ निश्चय) करना। यह शुद्ध भावना करने का एक तरीका है।
दो भाग समझने जैसे हैं:
- डॉक्टर न बनने की नियति
- डॉक्टर बनने का दृढ़ निश्चय
इस जीवन में निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप परिणाम (भाग्य या पिछले जीवन के कर्मों का परिणाम) हो भी सकता है और नहीं भी। नियति वर्तमान लक्ष्य से अलग है। इस प्रकार, आप क़िस्मत पर निर्भर हुए बिना भी इस जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए आपको किसी भी हालात में कभी भी न डगमगाए ऐसा दृढ़ निश्चय करना होगा और सिन्सियरली हर मुमकिन प्रयास करना होगा ताकि आपकी नियति बदल सके।
क्या निश्चय और प्रार्थनाएँ भाग्य बदल सकते हैं?
हाँ! जबकि कई लोग मानते हैं कि भाग्य को बदलना या उससे बचना असंभव है, सच्चाई यह है कि कोई भी व्यक्ति भाग्य को आकार देने वाले अन्य कारण कितने शक्तिशाली हैं इसकी परवाह किए बिना रोज़ाना प्रार्थनाओं के साथ मज़बूत, दृढ़ निश्चय रखकर प्रतिकूल भाग्य से बच सकता है।
अक्रम विज्ञान के प्रणेता, परम पूज्य दादा भगवान के अनुसार, जब वर्तमान नियति आपकी इच्छा के मुताबिक नहीं है, तो जो नियति आप चाहते हैं उसका दृढ़ निश्चय और उसे प्राप्त करने के लिए प्रार्थना, मनचाही नियति प्राप्त करने में मदद करते हैं। उन्होंने भाग्य बदलने के निम्नलिखित तरीके बताए हैं:
- दृढ़ निश्चय करें, "मुझे यही करना है।"
- निश्चय पर टिके रहें; चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ आएँ, बिल्कुल भी न डगमगाएँ।
- उसके प्रति सिन्सियर रहें (उसे हासिल करने के लिए आपको जो करना है वह करते रहें)।
परम पूज्य दादा भगवान के अनुसार, जो तय किया गया है उसे हासिल करने के लिए दृढ़ निश्चय से अपार शक्तियाँ मिलती हैं। यहाँ तक कि कुदरत भी आवश्यक संयोगों को इकट्ठा करने में मदद करती है। इसलिए एक बार ठान लें तो उसके प्रति सिन्सियर रहें और बीच में हार न मानें। इसलिए, ऐसा दृढ़ निश्चय करें कि आपको कोई नहीं रोक पाएगा।
दृढ़ निश्चय के अलावा, प्रार्थनाएँ आपके इस जीवन का भाग्य बदल सकती है। हालाँकि, यह सिर्फ़ एक प्रार्थना नहीं बल्कि शुद्ध हृदय से परमात्मा से की गई प्रार्थना होनी चाहिए। जितनी ज़्यादा शुद्ध भावना होगी, प्रार्थना उतनी ही ज़्यादा शक्तिशाली और प्रभावशाली होगी! प्रार्थना से अपना भाग्य बदलने के बारे में परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं:
प्रश्नकर्ता: उसका कर्म बदल जाता है? तो नियति बदल जाती है?
दादाश्री: अभी गरमी का मौसम हो तो भी बारिश ला देती है।
प्रश्नकर्ता: यह तो कोई कर्म के बंधन से बंधा हुआ हो, तो उसे हम मुक्ति किस तरह दिलवा सकते हैं?
दादाश्री: जितनी अंदर की शुद्धता है, असर उतना ही होता है न!
प्रश्नकर्ता: हमें किसी भी तरह का दर्द हो या कुछ भी भुगत रहे हो, यानी कि कर्म का जो कुछ भी फल भुगत रहे हो, तो यदि हम उसके लिए सच्चे हृदय से प्रार्थना करें तो क्या उसका फल उसे मिलता है? बदल सकते हैं?
दादाश्री: भगवान के प्रति प्रार्थना है न! वह सभी नियमों को एक तरफ रख देती है, नियति के नियम को दूर रख देती है।
इस प्रकार, अत्यंत शुद्ध हृदय की प्रार्थना से आप अपनी नियति बदल सकते हैं!
निष्कर्ष
भले ही पिछले जन्म के कर्म इस जीवन की नियति तय करते हैं, फिर भी वर्तमान में हमें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। यह भूमिका है हर संभव पॉज़िटिव प्रयास करने की, जिसमें निश्चय और प्रार्थना भी शामिल हैं! दृढ़ निश्चय और प्रार्थना से भाग्य बदला जा सकता है।