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सती किसे कहते हैं? सती की सही परिभाषा क्या है?

सती की परिभाषा

सती एक ऐसी स्त्री है जो इतनी पवित्र है कि उसे कभी भी अपने पति के अलावा अन्य पुरुषों के बारे में कोई विचार नहीं होता है। वह मन, वचन और काया से किसी अन्य पुरुष की ओर आकर्षित नहीं होती है।

सती स्त्री के सर्वोत्कृष्ट सदगुण

  • भले ही कुछ भी हो, पति उसके साथ हो या न हो या पति चला गया हो तो भी किसी दूसरे पुरुष के पास जाती नहीं।
  • सतियाँ उनके पति के सिवा अन्य किसी का विचार ही नहीं करतीं, और वह कभी भी नहीं। उसका पति तुरंत मर जाए, चला जाए, फिर भी नहीं। उसी पति को पति मानती है।
  • वह कैसा भी हो, यदि खुद भगवान पुरुष बनकर आए हों, लेकिन, ‘मुझे मेरा पति है, मैं पतिव्रता हूँ’ वह सती कहलाती है। सतीया अपने पति को ही भगवान मानती है ।
  • एक ऐसी स्त्री जो बिना किसी अपेक्षा के अपने पति की ओर इतनी समर्पित होती हैं, कि वह अपनी स्वेछा से पति के अंतिम संस्कार पर अपनी जान दे देती है ।

स्त्री सती कैसे बन सकती है ?

  • हो सकता है कि सती पहले ही न हुई हो और बिगड़ने के बाद भी सती हो सकती है। जब से निश्चय किया, तब से सती बन सकती है ।
  • जब कोई सती पर श्रद्धा रखता है और उनकी पूजा करता है ।
  • वह सती होने की इच्छा के कारण। उनका नाम लिया हो तो कभी न कभी सती बनेगी।

सती होने के लाभ

  • सतीत्व रखे तो कपट जाने लगता है अपने आप ही।
  • सती स्त्री के सभी रोग समाप्त हो जाते है ।
  • सती होने से सब कुछ स्पष्ट हो जाता है । सती होने वाली सभी स्त्रियां सीधा मोक्ष की ओर जाती है ।
  • ऐसा व्यकित , जो शीलवान होता है विचार, वाणी और वर्तन से | जिसे अनुपम फल मिलता है।

क्या एस काल में किसी को सती कह सकते है?

ऐसी सती स्त्रियाँ कलियुग (ऐसा युग जहाँ मन वचन और काया में एकता नहीं है ) में कैसे से हो सकती है ? सतयुग में (जहाँ मन वचन और काया में एकता थी ) भी बहुत कम सती स्त्रियाँ थी । तो कलियुग में कोई कैसे हो सकता है?

अत: स्त्रियों का दोष नहीं है, स्त्रियाँ तो देवी जैसी हैं। स्त्रियों में और पुरुषों में आत्मा तो आत्मा ही है, केवल पैकिंग का फ़र्क़ है। ‘डिफरेन्स ऑफ पैकिंग!’ स्त्री एक प्रकार का ‘इफेक्ट’ है। और आत्मा पर स्त्री का इफेक्ट रहता है। आत्मज्ञान से यह स्त्री होने का इफ़ेक्ट आत्मा पर नहीं पड़ता । यही मोक्ष है ।

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