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अनंत काल से सच्चे "ज्ञानीपुरुष" जैसे कि श्री महावीर भगवान, श्री कृष्ण भगवान, श्री राम भगवान के समय से आत्मधर्म चला आ रहा है। ज्ञानी की अनुपस्थिति में भेदभाव खड़े हो जाते हैं और जिससे अलग-अलग धर्म, जाति और संप्रदाय बन जाते हैं। जिससे समाज में शांति और एकता कम होती जाती है। परम पूज्य दादाश्री ने आत्मधर्म का ही पालन किया और लोगों को भी वही ज्ञान दिया। यदि घर में मतभेद हों तो, वहाँ से भी शांति चली जाती है। उसी प्रकार से धर्म में मतभेद होने से संसार में भी शांति चली जाती है। जब तक धर्म में भेदभाव रहेगा, तब तक संसार में कभी भी शांति नहीं होगी।

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परम पूज्य दादाश्री ने धर्म और समाज में 'मैं' और 'मेरा' के भेद को खत्म करने के प्रयत्न किए और लोगों को इससे होनेवाले खतरों से आगाह किया। त्रिमंदिर धर्म के क्षेत्र में परम पूज्य दादाश्री का एक अत्यंत क्रांतिकारी कदम है। त्रिमंदिर में सभी मुख्य धर्मों को एक साथ रखा गया है।

परम पूज्य दादाश्री ने एक बार कहा था कि, जब दुनिया में ऐसे २४ मंदिर बन जाएँगे, तब दुनिया का ऩक्शा कुछ ओर ही होगा।

निष्पक्षपाति भगवान

लोगों ने खुद भगवान और धर्मो को विभाजित किया है| किसी एक भगवान को चुनने से बेहतर हम सभी धर्मो का मूल सिद्धांत समझ ले और उसका अनुसरण करे| सभी देवताओं ने हमें आत्मा और आत्मसाक्षात्कार का महत्त्व बताया है|

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