More

आत्मज्ञान के बाद का जीवन

"मैं संसार में एक क्षण के लिए भी नहीं रहता। सांसारिक जीवन में रहने का मतलब है कि अनात्मा में रहना। मैं हमेशा आत्मा में रहता हूँ। मैं हमेशा अध्यात्म की जागृति अर्थात् मोक्ष में रहता हूँ"।

इस ज्ञान से आत्मा का अनुभव हुआ और वे अंबालाल पटेल से बिल्कुल जुदा हो गए। उनका अहंकार जो उनके लिए अत्यंत दुःख का कारण था, वह पूर्ण रूप से खत्म हो गया। अब नई अलौकिक दृष्टि से वे जीव मात्र में शुद्धात्मा देखते थे। बाहर का कुछ भी नहीं बदला था, लेकिन उनकी वाणी में शुद्ध ज्ञान निकलने लगा। जिससे उनके आसपास के लोग भी बहुत प्रभावित होने लगे। उनके नज़दीक के लोगों को यह जानने में देर नहीं लगी कि उनमें कुछ खास परिवर्तन हुआ है और उन लोगों को उनके सानिध्य में रहना अच्छा लगने लगा। प्रेम से वे उन्हें दादाश्री और दादा भगवान बुलाने लगे।

Dada Bhagwan

वे लोगों का दुःख नहीं देख पाते थे और वे जानते थे कि जो दृष्टि उन्हें मिली है, वह दृष्टि सभी को दुःख में से मुक्त करवाएगी और उन्हें मोक्ष देगी। उनकी दिल की इच्छा थी कि ‘जो सुख मुझे मिला, वह सभी को मिले’। उन्होंने सत्संग करना और लोगों को आत्मज्ञान देना शुरू किया। सन् १९६८ में उनसे मिलते ही २३ वर्षीय मेडिकल छात्रा नीरुबहन अमीन ने उनकी आध्यात्मिक शक्ति के महात्म्य को तुरन्त पहचान लिया। उन्होंने तुरन्त ही अपने मेडिकल के व्यवसाय को तिलांजली देकर अपना जीवन ज्ञानीपुरुष की सेवा में अर्पण करने का निश्चय कर लिया। जब कभी भी सत्संग की बात आती तो परम पूज्य दादाश्री ने कभी अपनी तबियत और आराम का ध्यान नहीं रखा। वे दोनों अपने खुद के खर्चे से देश-विदेश में घूम-घूमकर सत्संग और ज्ञानविधि देते थे।

उनके सत्संग हमेशा प्रश्नोत्तरी के रूप में होते थे। उनके उत्तर हमेशा प्रश्नकर्त्ता के प्रश्नों का पूर्ण समाधान करवानेवाले और अध्यात्मिक प्रगति करवाने वाले होते थे। अक्रमविज्ञान द्वारा जो कि सभी शास्त्रों का निचोड़ है, वे प्रश्नकर्त्ता को सिर्फ अध्यात्म ही नहीं लेकिन समाधानपूर्वक सांसारिक जीवन जीने का रास्ता भी बताते थे।

Dada Bhagwan

परम पूज्य दादाश्री ने जनवरी १९८८ में अपनी नश्वर देह का त्याग किया। जगत कल्याण के मिशन की ज़िम्मेदारी उन्होंने पूज्य नीरुमा और पूज्य दीपकभाई को सौंप दी। दादाश्री ने दोनों का ही ज्ञान सिंचन किया। दादाश्री ने पूज्य नीरुमा को ज्ञानविधि और सत्संग करने की सिद्धि प्रदान की और पूज्य दीपकभाई को सत्संग करने का आशीर्वाद दिया। और वर्ष २००३ में पूज्य नीरुमा ने पूज्य दीपकभाई को ज्ञानविधि द्वारा लोगों को ज्ञान देने का आशीर्वाद दिया।

×
Share on