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दादाश्री से ज्ञान प्राप्ति

ज्ञान - परम पूज्य दादाश्री से आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद का जीवन।

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८ जुलाई १९६८ को उन्हें परम पूज्य दादाश्री से आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। और उन्हें यह अनुभव हुआ कि वे 'खुद' नीरु (उनका संसारी स्वरूप) से जुदा हैं। उसके बाद से जुदापना की यह जागृति उन्हें जीवन के अत्यंत कठिन क्षणों में भी रही, तब भी, जब उनके पिताजी का निधन हुआ। इस अनुभव से उन्हें यह य़कीन हो गया कि परम पूज्य दादाश्री से जिस ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, वह वास्तव में भीतर काम कर रहा है।

उनके सभी परिवारजनों को यह अपेक्षा थी कि नीरु (उनका घर का नाम) अपनी मेडिकल प्रैक्टिस शुरू करेंगी। उनके पिताजी की योजना थी कि उनके लिए होस्पिटल बनाएँगे, जब कि नीरु के मन में कुछ और ही योजना थी। उन्होंने सोचा 'एक डॉक्टर के तौर पर मैं कुछ ही लोगों की शारीरिक तकली़फें दूर कर पाऊँगी, लेकिन यदि मैं ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री की सेवा करूँगी, जो कि सभी लोगों को ऐसा ज्ञान देते हैं कि जिससे मानसिक और सांसारिक परेशानियों से बाहर निकलने का रास्ता मिलता है, तो इस प्रकार से मैं और अधिक लोगों की मदद कर पाऊँगी। कितना अच्छा हो यदि मैं अपना जीवन इस ज्ञान को लोगों तक पहुँचाने के कार्य में परम पूज्य दादाश्री की मदद करने में बिताऊँ, 'ज्ञान' जो लोगों को चिंता और दुःख से शांति और मुक्ति का अनुभव करवाता है। शरीर की बीमारियाँ दूर करने के लिए तो बहुत सारे डॉक्टर हैं। लेकिन जो लोगों को मुक्ति दिलवा सकें ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' तो एक ही हैं! इस हेतु से उन्होंने परम पूज्य दादाश्री की सेवा में अपना जीवन बिताने का निश्चय किया। इस प्रकार १९६८ में २३ वर्ष की उम्र में सांसारिक सुख-संपन्नता से भरा जीवन छोड़कर ज्ञानीपुरुष की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने का निश्चय किया।

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इसके बाद के चार साल उन्होंने परम पूज्य दादाश्री के साथ बिताए और इस विज्ञान को पूरी तरह से समझा। पूज्य नीरु माँ की आंतरिक आध्यात्मिक स्थिति की ओर संकेत करते हुए परम पूज्य दादाश्री उन्हें 'अक्रम के मल्लिनाथ' (पिछली चौबीसी के १९ वे तीर्थंकर, स्त्री देह मे मात्र वे ही एक तीर्थंकर थे।) कहते थे। सन् १९७३ में पूज्य नीरु माँ की उपदेश देने की योग्यता के बारे में पूज्य दादाश्री ने कहा था, "नीरूबहन जब ज्ञान का उपदेश देती हैं, वे शुद्धात्मा होकर देती हैं, और उन बातों से ठंडक पहुँचती हैं। नीरूबहन को ज्ञान प्राप्त किये चार साल ही हुए हैं, फिर भी जैनो के चार सौ साधू महाराजों, बुजुर्गो ,सभी को समझा सकती हैं  "।

पूज्य नीरु माँ की यह अनोखी खासियत थी कि वे अध्यात्म के गूढ़ और गहन तथ्य बहुत ही सादी-सरल भाषा में बता सकती थीं। जिसे लोग आसानी से समझ सकते थे।

पूज्य नीरु माँ - ज्ञान प्राप्ति के बाद का जीवन

इस वीडियो में पूज्य नीरु माँ के दादाश्री के प्रति के समर्पण भाव को प्रस्तुत किया गया है। दादाश्री से १९६८ में आत्म ज्ञान प्राप्त करने के बाद नीरुबहन की तीव्र इच्छा थी की दुनिया में यह ज्ञान फैले, ज्यादा से ज्यादा लोग इस ज्ञान से परिचित हों। इस बारे में और जानने के लिए यह वीडियो देखें।

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