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संसार में इतना दुःख और पीड़ा क्यों है?

दुःख सब नासमझी का ही है इस जगत् में। दूसरा कोई भी दुःख है, वह सब नासमझी का ही है। खुद ने खड़ा किया हुआ है सब, नहीं दिखने के कारण! जले तब कहें न, कि भाई! कैसे आप जल गए? तब कहता है, 'भूल से जल गया, कोई जान-बूझकर जलूँगा?' ऐसे ये सारे दुःख भूल से हैं। सब दुःख अपनी भूल का परिणाम है। भूल चली जाएगी तो हो गया।

प्रश्नकर्ता : कर्म चिकने होते हैं, उसके कारण हमें दुःख भुगतना पड़ता है?

दादाश्री : अपने ही कर्म किए हुए हैं, अपनी ही भूल है। किसी अन्य का दोष इस जगत् में है ही नहीं। दूसरे तो निमित्त मात्र हैं। दुःख आपका है और सामनेवाले निमित्त के हाथों दिया जाता है। ससुर की मृत्यु का पत्र पोस्टमेन दे जाए, उसमें पोस्टमेन का क्या दोष?

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